SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४ जैनहितैषी भाग १३ "डरनेकी कोई बात नहीं है, मैं ही आपका ऋणी हरज नहीं है ।" यह कहकर उसने अपना पुराना हूँ।" बाबूसे यह कहकर उसने और डाँकुओंको वृत्तान्त कहना आरंभ किया। अन्तमें आँसुओंबुलाकर उनसे कुछ कह दिया और बाबूको को पोंछतेहुए वह डाक्टर साहबसे कहने लगा, लूटनेमें उसकी सलाह न देखकर अन्य डाँकू जहाँ- “आज यदि कहीं मेरा पुत्र जीता होता और मुझे को जानेवाले थे वहींको चल दिये। देखनेको मिल जाता तो मैं सब कुछ पा लेता।" ___ डाक्टर बाबूने डॉकूसे पूछा कि तुमने मुझे से यह कहकर वह स्तब्ध हो रहा, उसकी आँखोंसे कैसे पहचाना और किस लिए मेरी रक्षा की. आसुआकी धारा बहने लगी । डाक्टरसाहब यह जाननेके लिए मैं बहुत ही उत्कण्ठित हो रहा भी उसके साथ रोने लगे । कुछ देर पीछे आँसू हूँ। डाँकूने कहा कि "बहुत दिन हुए तब मैं घायल पोंछकर डाक्टर बाबू कहने लगे, “मैं उस भाती होकर एक जंगलमें पड़ा था। वहाँसे आपने मुझे ग्रामको जानता हूँ। मैं वहाँ कुछ दिनोंके लिए उठवा मँगाया था और मेरे प्राण बचाये थे। मुझे चिकित्सा करनेको गया था । आपकी पहलेकी आपने गाँववालोंके हाथसे बचाया था और पनि सब बात मैंने वहाँ नायब तथा और और लोगोंहाथ नहीं पड़ने दिया था। मैं सदाके लिए आपके . से सुनी थीं। आपका भाग्य बड़ा खोटा है । हाथ बिक चुका हूँ। अच्छा चलिए, मैं आपको ३ - इसीसे आप भारी भूलमें पड़कर सबको त्यागकर घाटीके उस पार पहुँचाकर चला आऊँगा।"डॉकी काले पानी चले गये थे।" ऐसी कृतज्ञता देखकर डाक्टर साहबने कहा, रामेश्वरने विस्मित होकर पूछा, “सो कैसे ?" " तुम्हारा स्वभाव तो महात्माओंके जैसा है, डाक्टर साहबने कहा, “ आपने बाजारके रास्ते तुमने इस डॉकूपनकी वृत्तिको क्यों कर में जिस वेश्याको देखा था और पार्वती जाना रक्खा है ?" ___था, वह पार्वती नहीं थी।" ___रामेश्वर एक लंबी साँस ले कर चुप हो रहा। है रामेश्वरने कहा कि “ वह चाहे पार्वती हो रामश्च यह देखकर डाक्टरसाहबने समझ लिया कि या न हो, मेरे लिए दोनों बातें एक ही सी हैं। यह मनुष्य कोई बड़ा दुःख पाकर डॉक हो बैठा क्योंकि वह पापिन भी कहीं वेश्या बनी हुई है और चेष्टा करनेसे यह कपथसे हटाया जा समय काटती होगी।" सकता है। उन्होंने सोचा कि इसने मेरी प्राणरक्षा डाक्टरने कहा “ नहीं, वह आपके शोकमें रक्षा की है, इसलिए इसके उद्धारका उपाय पद्मानदीमें कूद पड़ी थी।" रामेश्वरने इस बातको करना मेरा कर्त्तव्य है। उन्होंने रामेश्वरसे पूछा अश्रद्धासे सुनकर हँस दिया। " तुम कौन हो ? तुम डाँकू कैसे हो बैठे ? चाहे जैसे ही क्यों न हो किन्तु डाक्टर तुम्हारा हाल जानेनेको बड़ी उत्कंठा है। यदि- साहब सारा सच्चा वृत्तान्त जानते थे। उन्होंने कोई हर्ज न हो तो अपना हाल कहकर चित्तको नायब और दारोगाकी सलाहसे लेकर पार्वतीके शान्त करो। तुमने हमारा प्राण बचाया है, इस- पद्मामें डूबने तकका सारा हाल कह सुनाया। लिए हमारे हाथसे तुमको कोई हानि नहीं पहुँच उसे सुनकर रामेश्वरने अपने यज्ञोपवीतको हाथसे सकती ।" डॉकूने कहा-“आपने भी एक वार बाहर खींचकर और उसे डाक्टर साहबके हाथसे मेरी प्राणरक्षा की थी। अब यदि आपके हाथसे छुआकर कहा-“मुझे धोखा न देना, शपथपूर्वक उस जीवनमें कोई विघ्न भी हो तो भी कोई कहना कि क्या ये सब बातें सच्ची हैं ? यदि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522830
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy