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________________ अङ्क १] भाग्यचक। ४३ जंगली पशुओंकी भाँति इधर उधर घुमाया। आधीरातका समय था। नदीके जलपर चन्द्रमाकी इसके बाद जितने भी बदमाश और डाँकू थे वे किरणें काँप रही थीं। नदीके किनारे किनारे सब उसका प्रताप सुनकर उसके पास सब ओर- एक पाल्की धीरे धीरे जा रही थी । पाल्ककि से आकर इकडे होने लगे। अब रामेश्वरने भीतर एक बाबूं लेटे हुए थे। घरवाली, लड़की, डकैतोंका सरदार बनकर मनुष्यजाति पर घोर ईंटोंका पजाबा, नया बाग, नये बागके केवला अत्याचार करना आरंभ कर दिया। उसे कभी कोई मालीकी दुरंगी दाढ़ी और चपटी नाक इस पकड़ नहीं सका । केवल एक बार वह पकडा तरहकी अनेक बातें थीं, जिनका बाबू. विचार जाता, पर बच गया । एक दिन वह अपने कर रहे थे । उनकी विचारपरम्परा चल ही डाँकुओंके दलके साथ बहुत दूर पर डाँका रही थी कि इतनेहीमें एकाएक पाल्की पर एक डालने गया था। जहाँ डाँका डाला गया, वहाँके जोरका धक्का लगा और वह कुछ ही दूर लोग सचेत और बलवान थे। वे डाँकुओंसे भिड़ चल कर पृथ्वीपर आरही । बाबूने पाल्कीसे पड़े। रामेश्वरको चोट आगई, वह बेहोश हो गया। मुँह बाहर निकाला, यह देखते ही वे काँप उठेकि उसके संगियोंने उसको वहाँसे उठा ले आकर एक चन्द्रमाकी किरणोंसे पचीस तीस तलवारें चमक दूसरे गाँवके पास वनमें छोड़ दिया। दूसरे दिन रही हैं और जिन लोगोंके हाथों में वे तलवारें हैं, सबेरे गाँवके लोगोंने उसे देखा जिससे कि वे वे सब चुपचाप पैर रखतेहुए आगेको बढ़ते जीमें डरे और पुलिसको सूचना देने जाने लगे। आते हैं। बाबू सब समझ गये। डाँकुओंने इतनेहीमें पासके नगरके एक डाक्टर उस पाल्कीके पास आकर बाबूको बाहर निकाल गाँवके किसी धनी मनुष्यकी चिकित्सा करनेके लिया। इतनेहीमें एक डॉकूने बड़े जोरसे घुमाकर लिए वहाँ आगये। उन्होंने कहा,-" यह शीघ्र एक चाबुक चलाया, पर रामेश्वरने हाथ फैलाकर ही मरजानेवाला है-मैं चिकित्सा करके उस कोड़ेको बीचहीमें पकड़ लिया और बाबूको इसको बचा लूंगा । पर यदि तुम इसको पुलिसमें बचा लिया। उसने सारे डाँकुओंसे कहा,-"तुम लेजाओगे, तो यह मरजायगा-इसलिए पुलिसको लोग जरा ठहरो, जान पड़ता है कि इनको मैंने अच्छे होनेके बाद सूचना देना।" कहीं देखा है, इन्हें अच्छी तरह देख लूं।" · · लोगोंने डाक्टरकी बात मान ली । डाक्टर जिसने चाबुक चलाया था, उसने खिसियाकर चिकित्सा करने लगे और उसके प्राण बच गये। कहा,-" तुमने तो सबहीको देखा है ! वह अच्छा हो ही रहा था, उठनेकी शक्ति ही सब तुम्हारे कुटुम्बी और नातेदार ही तो हैं । आ पाई थी कि पुलिसके डरसे डाक्टरके यहाँ- अच्छा तुम अलग हो जाओ, हम लोग बाबूको से भाग गया। पहचाने लेते हैं।" इस पर रामेश्वरने दर्पसे तल वार घुमाकर कहा-"या तो सब दूर हो जाओ, चतुर्थ परिच्छेद। नहीं तो जिसमें साहस हो वह सामने हथियार मूसारके डरसे देश काँपने लगा; किन्तु लेकर आ जावे ।" यह बात सुनते ही सब हट 'वह आनन्ददुलारेके शोकको नहीं भुला कर खड़े हो गये। इसके बाद रामेश्वरने बाबूसे पूछा स। जिस घटनाका हाल ऊपर लिखा गया है कि "क्या आप डाक्टर हैं ?" बाबूने उत्तर दिया आके चार वर्ष पीछे रामू या रामेश्वर एक दिन कि “ हाँ , मैं डाक्टर हूँ, मुझे बचा देओ, मैं । अपनी डकैती सेनाके साथ चला जा रहा था। तुम्हारा जन्मभर ऋणी रहूँगा।" रामेश्वरने कहा कि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522830
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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