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________________ ४२ जैनहितैषी [भाग १३ रामेश्वर अपने लड़के के लिए कितने ही दिनोंतक रामेश्वरसे यह सहा नहीं गया। उसने वेश्याकी पागलोंके सदृश घूमता फिरता रहा । एक दिन छातीमें जोरसे एक लात मारी और अपनी वह बाजारके रास्तेमें जा बैठा और सोचने लगा, रास्ता धर ली। इसका उसको कुछ भी पता नहीं संभव है कि आज मेरा लड़का हाट करनेको था कि मैं कहाँ जा रहा हूँ। कालेपानीमें वह निकल आवे । युवावस्थाके जितने पथिक केवल अपने लड़केके मुखहीका ध्यान करता उधरसे निकलते थे रामेश्वर उन सबको रहता था और बैठे बैठे सोचा करता था अतृप्त दृष्टिसे देखता जाता था। अचानक एक कि उस मुखको अब कब देखूगा। बस यह स्त्रीको देखते ही रामेश्वर घबड़ा गया। देखने में आशा ही उसको संसारसे जोड़नेवाली एक गाँठ वह स्त्री वेश्या जान पड़ती थी । उसके आका- थी। अब यह गाँठ भी छूट गई। रको देखकर रामेश्वरने समझा, पार्वती है । आगे उसको राहमें एक स्त्री मिली जो कि उस समय पार्वती २० वर्षकी थी, रामेश्वरको एक सुन्दर बच्चेको गोदमें लिये थी । रामेश्वरने गये बीस वर्ष हो गये, इससे अब उसके ४० उसके गालपर एक जोरका तमाचा मारा और वर्षकी अवस्था होनेके दिन हैं-यह स्त्री भी इतनी बच्चेको छीनकर पृथ्वी पर खड़ा कर दिया। ही अवस्था की है। जिसको बीस वर्षकी अवस्था स्त्री बड़े जोरसे रोने लगी । रामेश्वरने कहा हो जानेके पीछे फिर न देखा हो, वह चालीस "तू राक्षसी जातिकी है; बच्चेको मार डालेगी। वर्षकी होनेपर सहजमें नहीं पहचानी जा सकती। इसे छोड़ दे।” जिस पार्वतीको छोड़कर रामेश्वर गया था, यह रामेश्वरने गली गली और बन बन भटकते वह पार्वती नहीं है; किन्तु रामेश्वरने सोचा कि यह हुए सारा दिन बिता दिया। जब रात हुई तो जो आकृतिका भेद है, सो अवस्थाके कारणसे हो उसे बड़ी भूख लगी। सामने एक दूकान थी मया है । वेश्या लाल वस्त्र पहने और गलेमें बनैले और दूकानवाला टट्टी दे कर सो रहा था। रामेश्वर सूखे फूलोंकी माला डाले हुए, तमाखू खाती हुई, टट्टी तोड़कर घुस पड़ा और सामने जो कुछ मिला एक मुसल्मानसे बातें कर रही थी। रामेश्वरने खाने लगा। दूकानदारने उठकर गाली देना आरंभ उसके पास जाकर गंभीर स्वरसे पूछा-" मेरा किया। इस पर रामेश्वरने उसे गला पकड़कर लड़का कहाँ है ? " वेश्याने आकाशकी ओर दूकानके बाहर निकाल दिया । दूकानदार दौड़मुख करके कहा,-" तेरा लड़का कौन ?" ता हुआ गया और चौकीसे एक बरकंदाजको रामेश्वर-आनन्ददुलारे ! बुला लाया। रामेश्वरने बरकंदाजकी लाठी छीन कर उसीके सिरमें जमाई जिससे कि उसका सिर वेश्या-तू मर क्यों नहीं जाता ? क्या फट गया ! शीघ्र ही यह खबर फैल गई कि एक मरनेके लिए रस्सी नहीं मिलती ? प्रसिद्ध डाँकू कालेपानीसे लौट कर देशको लूटे रामेश्वर-रस्सी शीघ्र मिल जायगी। इस डालता है और जिसे पाता ह उसीको मारता है। समय तू यह तो बतला दे कि आनन्ददुलारेको पुलिस चौकन्नी होगई और मजिष्ट्रेटने उसके कहाँ भेज आई है ? नामका दोसौ रुपये इनामकी गिरफ्तारीका इश्तवेश्या-चूल्हेमें भेज आई हूँ । उसको नदीके हार निकाल दिया । रामेश्वरने कुछ दिनोंतक घाट पर पहुँचा आई हूँ। उसके चेचक निकली तो इसी तरह लूट मार करते हुए छिपछिपे दिन थी। वह गया, अब तू भी जा। बिताये और लोगोंने उसका पीछा करके उसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522830
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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