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________________ अङ्क १] हिन्दी-जैनसाहित्यका इतिहास। ३३ बाबू वेणीप्रसादजी । आप बाबू मोती- अध्यवसाय और परिश्रमसे चल रही है। आपके ही लालजीके भाई हैं । अभी एम. ए. के विद्यार्थी प्रयत्नसे मंडली कई नामी नामी ग्रन्थोंके प्रकाशित हैं। हिन्दी बड़ी अच्छी लिखते हैं। सरस्वती करनेमें समर्थ हुई है। जीवदया, सुखानन्दमनोरमा आदिपत्रोंमें आपके कई प्रतिभापरिचायक लेख नाटक आदि कई पुस्तकें आपने छात्रावस्थामें प्रकाशित हुए हैं । आगे आपसे हिन्दीकी बहुत लिखी हैं। हिन्दीका आपके द्वारा बहुत उपकार कुछ सेवा होनेकी आशा है। हुआ है और होगा। ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी । आप लखन- बाबू कन्हैयालालजी। आप श्रीमाल जैन ऊके रहनेवाले अग्रवाल जैन हैं । ७-८ वर्षसे हैं। भरतपरकी पल्टनमें हेडकार्क हैं । आपने आप गृहत्यागी होगये हैं। बम्बईके जैनमित्रका 'अंजनासन्दरी' नामका एक नाटक लिखा है सम्पादन इन दिनों आप ही करते हैं । गृहस्थधर्म, जिसे व्येंकटेश्वर प्रेसने प्रकाशित किया है। छहढालाकी टीका, नियमसारकी टीका, अनुभ- नाटक स्वतंत्र है और अच्छा है। आपने सुनते हैं वानन्द आदि कई जैनधर्मसम्बन्धी ग्रन्थ आपके और भी कई पुस्तकें लिखी हैं, पर हम उनसे परिलिखे हुए हैं। आप जैनसमाजकी निःस्वार्थ भावसे चित नहीं। अनवरत सेवा कर रहे हैं। पं० उदयलालजी काशलीवाल। आप मुनि जिनविजयजी । आप श्वेताम्बर खण्डेलवाल जैन हैं। सत्यवादी नामक पत्रका सम्प्रदायके साधु हैं । बहुत अच्छे विद्वान हैं। ' न! आप दो वर्षतक सम्पादन करते रहे हैं। जैनधआपका ऐतिहासिक ज्ञान बहुत बढ़ा चढ़ा है। मैके कई संस्कृत ग्रन्थोंका आपने अनुवाद किया पाटनआदिके पुस्तकभण्डारोंके ग्रन्थोंसे आप है। आप अच्छी हिन्दी लिखते हैं । इस समय सविशेष परिचित हैं। हिन्दी और गुजराती दोनों आप बम्बईमें रहते हैं । हिन्दीजैनसाहित्यप्रसाभाषाओंके लेखक हैं, और मजा यह कि दाना रक कार्यालयके मालिकोंमें हैं। इस वर्ष आपने भाषाओंमें आप मातृभाषाके समान शुद्ध लिख ‘हिन्दी-गौरवग्रन्थमाला' नामकी सीरीज निकासकते हैं। विज्ञप्ति-त्रिवेणी, कृपारस-कोश, प्रश- लनका प्रारंभ किया है। स्तिसंग्रह आदि कई संस्कृत ग्रन्थोंका सम्पादन आपने किया है और बडी योग्यतासे किया है। पं० दरयावसिंहजी सोधिया। आप गढाइन ग्रन्थोंकी आपने बहुत बडी बडी विस्तत कोठा जिला सागरके रहनेवाले हैं। आजकल भूमिकायें हिन्दीमें ही लिखी हैं जो इतिहासपर इन्दौरमें रहते हैं। हिन्दीमें आपने कृषिविद्या, अपूर्व प्रकाश डालती हैं । जैनधर्मके भी आप हिन्दी व्याकरण, कहावतकल्पद्रुम आदि कई अच्छे मर्मज्ञ हैं । आपके लेख सरस्वती आदि पुस्तकें लिखी हैं। अभी लगभग एक वर्ष पहले अनेक पत्रोंमें प्रकाशित हुआ करते हैं। आपने 'श्रावकधर्मसंग्रह' नामक जैनग्रन्थ लिख _ बाबू माणिकचन्दजी। आप पोरबाड़ हैं कर प्रकाशित कराया है। और बी. एल एल.बी. हैं । खंडवमें वकालत करते बाबू खूबचन्दजी सोधिया । आप पं० हैं। छात्रावस्थासे ही आपको हिन्दी लिखनेका दरयावसिंहजी सोधियाके पुत्र हैं। बी. ए. तथा शौक है । आप कुछ समय तक प्रयागके एल. टी. हैं और हिन्दीके होनहार लेखक हैं। अम्युदयके सहकारी सम्पादक रह चुके हैं। अभी आपने हेल्प्सके निबन्धोंका अनुवाद खंडवेकी हिन्दीग्रन्थप्रसारक मण्डली आपके ही ' सफलगृहस्थ ' के नामसे लिखा है और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522830
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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