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________________ जैनहितैषी [भाग १३ और देशभक्त हैं। जयपुरकी जैनशिक्षाप्रचारक लिखी हैं । गत वर्षसे आप एक 'जातिप्रबोधक' समिति और वर्द्धमानविद्यालय ये दो संस्थायें नामका मासिकपत्र निकालने लगे हैं। आपहीने अपने असीम परिश्रम और स्वार्थत्यागके मि० वाडीलाल मोतीलाल शाह। आप बलसे स्थापित की थीं । जैनसमाजमें हिन्दीकी अहमदाबादके रहनेवाले श्रीमाल जैन हैं और प्रतिष्ठाके लिए आपने बहुत उद्योग किया है। गुजरातीके प्रमावशाली पत्र जैनहितेच्छुके आपने महेन्द्रकुमार नाटक आदि दो तीन हिन्दी सम्पादक हैं । गुजरातीके आप लब्धप्रतिष्ठ लेखक पुस्तकें भी लिखी हैं। हैं। हिन्दी आपकी मातृभाषा नहीं है, तो भी आप अपने हिन्दीभाषी भाइयोंके लिए कुछ लाला मुंशीलालजी । आप अग्रवाल जन न कुछ लिखा ही करते हैं। आपके जैनसमाचाहैं, ग्रेज्युएट हैं और संस्कृतके एम. ए. है । पहले रपत्र में हिन्दीके लगभग आधे लेख रहते थे। लाहौरके किसी कालेजमें प्रोफेसर थे । इस हिन्दीसे आपको बहुत ही प्रेम है। अभी थोडे समय पेन्शनर हैं और लाहौरमें ही रहते हैं । आप ही दिन पहले झालरापाटनमें जो 'राजपूताना उर्दू और हिन्दी दोनों भाषाओंके लेखक हैं। हिन्दी-साहित्य-समितिकी स्थापना हुई है और हिन्दीमें आपकी लिखी हुई कई अच्छी अच्छी जिसमें लगभग १०-११ हजारका चन्दा केवल पुस्तकें हैं-१ दरिद्रतासे श्रेय, २ कहानियोंकी जैन सज्जनोंने दिया है, वह आपके ही उद्योगका पुस्तक,३ शील और भावना, ४ शीलसूत्र, ५ फल है। आपने उसमें स्वयं अपनी गाँठसे दो छात्रोंको उपदेश आदि । संस्कृतके भी आप हजार रुपयेकी रकम दी है । इस समितिका अच्छे विद्वान् हैं, इस लिए आपने क्षत्रचूडामणि काम आपके ही हाथमें है। इसके द्वारा बहुत ही काव्यका हिन्दी अनुवाद लिखा है और पंजाबके जल्दी अच्छे अच्छे ग्रन्थ लागतके मूल्य पर शिक्षा-विभागके लिए संस्कृतकी चार पुस्तकें प्रकाशित होंगे। लिख दी हैं । उत्तराध्ययन सूत्रका भी आपने बाबू सुपार्श्वदासजी गुप्त । आप आराके हिन्दी अनुवाद किया है । आपका स्वास्थ्य रहनेवाले अग्रवाल जैन हैं। एम. ए. के विद्यार्थी अच्छा नहीं रहता है, वृद्धावस्था है, तो भी आप हैं। हिन्दी लिखनेका आपको बहुत उत्साह है। हिन्दीमें कुछ न कुछ लिखा ही करते हैं। लिखते भी अच्छा हैं । सरस्वतीमें प्रायः लिखा बाबू दयाचन्दजी गोयलीय । आप करते हैं। अभी आपने एक 'पार्लमेंट' नामका अग्रवाल जैन हैं और बी. ए. हैं । इस समय लगभग ४०० पृष्ठका ग्रन्थ लिखा है, जो लखनऊके कालीचरण हाईस्कूलमें मास्टर हैं। शीघ्र ही प्रकाशित होनेवाला है। हिन्दीकी सेवाका आपको बहुत ही उत्साह है। दाबू मोतीलालजी। आप आगरेमें स्कूल अच्छी हिन्दी लिखते हैं । हिन्दी-ग्रन्थरत्नाकर- मास्टर हैं। पल्लीवाल जैन हैं। बी. ए. हैं । आपने कार्यालय द्वारा आपकी १ मितव्ययता, २ स्माइल्सके 'सेल्फ हेल्प' की छाया लेकर 'स्वावयुवाओंको उपदेश, ३ शान्तिवैभव, ४ अच्छी लम्बन' नामका ग्रन्थ लिखा है, जो बहुत आदतें डालनेकी शिक्षा, ५ चरित्रगठन और पसन्द किया गया है। इन्दौरकी होलकर्स हिन्दी मनोबल, ५ पिताके उपदेश, ६ अब्राहम लिंकन कमेटीने इससे प्रसन्न होकर आपको परितोषिक आदि कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। दिया है । कविता भी अच्छी लिखते हैं । आगे जैनधर्मकी भी आपने कई छोटी छोटी पुस्तकें आपके द्वारा हिन्दीकी बहुत कुछ सेवा होगी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522830
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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