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________________ म सम्मानित। METERTimrHETREEDEY ५०१ . हम उसके मकानसे चले आये । शोक फिर नया हो गया और उसके दुर्बल स्नायु उस शोकको धारण नहीं कर सके ।" • हमने कहा-"क्या आप जिसका वह चित्र हम कुछ स्थिर नहीं कर सक । स्वामाजाक था उस संन्यासीको पहचानते हैं ?" चित्रको हमने बारबार देखा और आदमियोंको अमरेन्द्र ने कहा " नहीं।" भी उसे दिखाया । उसे देखकर सभी प्रसन्न हुए । अमरेन्द्रबाबू या उनकी स्त्रीकी तरह अमरेन्द्र बाबूने गवर्नमेण्टको परोपकारी किसीको बिजली जैसा आघात या बेहोशी नहीं कामोंके लिए बहुतसा रुपया दिया था और अपनी हुई। उनका पुराना नौकर मोहन भी स्वामी- . उदारतासे राजपुरुषोंको मुग्ध कर लिया था। अभी जीको देखकर सहम गया था । तो क्या ये 4 हाल ही उनकी इस सहृदयताके उपलक्षमें गवर्नलोग स्वामीजीके साथ परिचित हैं ? स्वार्माजीक मेण्टने उपाधि देकर उनकी सम्मानवृद्धि की पिछले जीवनकी एक बात मालूम थी कि व है। राय अमरेन्द्रनाथ मित्र बहादुर अपने बढ़िया बहुत बड़े ऐश्वर्यवान् थे । अमरेन्द्र बाबू भी उद्यान में अपने मित्रोंको भोज देने की तयारी कर धनवान हैं । इन दोनोंमें क्या कोई सम्पर्क है ? र रहे हैं । बाग हर तरह से सजाया गया था। न पर इस प्रश्नके उत्तर पानेका कोई उपाय नहीं । नृत्य, गीत, पान और भोजनद्वारा तृप्त होकर था। उस दिन अमरेन्द्र बाबूने हमारा जैसा अप प निमन्त्रित व्यक्ति नये रायबहादुरका यशोगान मान किया था उसको देखकर हमने मन-ही- कर रहे थे। बागमें एक ओर परदा-मिलन भी मन संकल्प कर लिया था कि हम उनके . र हो रहा था । कलकत्तेके अनेक अच्छे घरोंकी बुलाने पर भी कभी उनके यहाँ नहीं जायेंगे। पण स्त्रियाँ अमरेन्द्रगृहिणीके आदरको पाकर उसपर पर इस रहस्यको खोलने की प्रबल इच्छा हमारे , "र मोहित हो रही थीं। हमने उसका उस रातका मनमें उत्पन्न होगई थी। वेश नहीं देखा था; किन्तु हम मानरचक्षुकी कोई एक सप्ताह बाद स्वयं अमरेन्द्र बाबू संहायतासे उस दैवी मूर्तिके दर्शन कर रहे थे। हमारे यहाँ आये । उस दिन के उस क्षणभरके वही मदालसा भाव, मरालगति, मधुर और सरस कठोर नीचभावका चिह्न भी अब उनके चेहरे हास्य तथा आँखोमें विलास-विलोल कटाक्ष । पर नहीं था । उन्होंने हमसे क्षमा माँगी और आज अमरेन्द्र बाबूके सम्मानसे वह भी सम्माअपने घर आनेके लिए हमसे अनुरोध किया। निता हुई है। अनेक बड़े बड़े घरकी स्त्रियाँ हमने कहा-" क्या एक बात हम पूछ सकते उसका आतिथ्य पाकर खूब प्रसन्न हुई हैं। हैं? संन्यासी-" बागके भीतर भीड़ बहुत थी। लोगोंके __ हमारी बातको काटकर अमरेन्द्रबाबूने कहा- झुण्डके झुण्ड घूम रहे थे । लताओंके बीचमें "हाँ, यही बात कहनेके लिए तो मैं आया बैठे हुए अनेक युवक मद्यपान कर रहे थे और हूँ। एक बार किसी संन्यासीकी दवा खाकर जोर जोरसे हँस रहे थे। हम भी बागसे बाहर हमारी स्त्रीका कोई रिश्तेदार मर गया था। उसी एक सूखे हुए आमके वृक्षके पास एकान्तमें बैठे दिनसे हम लोग संन्यासियोंसे जलते हैं । उस हुए विश्राम ले रहे थे । वहाँ चाँदनीके सिवा दिन संन्यास के चित्रको देखकर उसका पुराना और कोई प्रकाश नहीं था। ११-१२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522828
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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