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________________ ५०० CHITRImmmmmOLI जैनहितेषी रोगकी कहानी कह रही थी। उसके अङ्गमें एक स्नायु कमजोर हैं, इसलिए एक तेजस्वी पुरुषके तरहका आलस्य सदा ही बना रहता था । पर चित्रको देखकर इन्हें 'फिट' आ गया था।" उस आलस्यसे उसकी शोभा बढ़ती थी, घटती अमरेन्द्रबाबू हमारी बातको अच्छी तरह नहीं नहीं थी। समझे । पास ही संगमर्मरकी छोटीसी मेजपर वह ___ हमने उसके साथ बात करते करते कहा- चित्र रक्खा हुआ था । उसे उठाकर वे देखने " उस दिन संन्यासीकी बात हमने कही थी-याद लगे। उन्हें उसके छूते ही मानो बिजलीका है?" धक्का लगा। उनकी आँखें लाल पड़ गई और ___ उसने वस्त्रको सम्हालते हुए मदालसा भावसे उनके हाथसे वह चित्र तप्त लोहेकी तरह असह्य कहा-"कौन संन्यासीकी ?" हमने कहा-"जिसे होकर गिर पड़ा ! सुनकर अमरेन्द्र बाबूने कहा था कि संन्यासी उन्होंने लाल लाल नेत्र निकालकर पागलोंकी प्रायः बदमाश होते हैं।" तरह चिल्लाकर कहा-" यह क्या है ? " उसने उस बात पर पूरा ध्यान न दिया और __ हमने कहा-" संन्यासीका चित्र !" अलसभावसे पूछा-" कौन बदमाश ?" हमने जेबमेंसे चित्र निकालकर उसके सामने मन अमरेन्द्र-" पर यह हमारे घरमें किस तरह रख दिया और कहा-“ देखिए यह ! " आया ? आप डाक्टरीके लिए आते हैं, डाक्टरी कीजिए।" सर्वनाश ! हमें इस बातकी स्वप्नमें भी आशा " नहीं थी। स्नायुरोगमें उत्तेजक पदार्थ निषिद्ध हैं- उसके दुर्विनीत व्यवहारसे हमें बहुत दुःख यह बात हम अच्छी तरह जानते थे किन्त संन्या- हुआ। उसके मुख पर कोमलताका पता तक सीका चित्रगत तेज उसके स्नायुमण्डलको इतना नहीं था । केवल एक नीच और नारकी भाव उत्तेजित कर देगा-इस बातका हमें रत्तीभर भी चमक रहा था। उसके शरीरमें भद्रताका चिह्न संदेह नहीं था। चित्रको देखते ही अमेरन्द्र बाबकी भी कहीं नजर न आता था। स्त्रीकी आँखें स्थिर हो गई। हाथ पाँव अकड़ गये हमें उसकी बातको सुनकर बहुत दुःख हुआ। और मुँह रक्तसञ्चालनकी अधिकत्तासे सुर्ख पड़- हमने कहा-" आप इस कदर आपेसे बाहर गया। एक बार चीख मारकर वह मार्छिता हो क्यों हुए जाते हैं ? " । गई । हमें बहुत दुःख हुआ। हमने उसी समय उसने पहले जैसे ही उत्तेजनाके स्वरमें कहाबिजलीकी घंटी बजाई । नौकर उपस्थित हुआ। “ आप डाक्टरोंकी तरह डाक्टरी करना चाहें हमने उसकी आँखोंपर ठण्डे पानकि छींटे देने तो आइए । कलकत्तेमें डाक्टरोंकी कमी नहीं शुरू किये । धीरे धीरे उसने आँखें खोलीं। है। और फिर हमारे यहाँ तो न जाने कितने हमने पूछा-"अब तबअित अच्छी है ?" डाक्टर आने के लिए लालायित हैं।" ___ उसने सिर्फ सिर हिला दिया। इसी समय उसके चेहरेपर नीच और निष्ठरभाव बढ़ता अमरेन्द्र भी आगये। वे घबराये हुए हमारे पास जाता था। हमने सोचा कि यही भाव इसका आकर बैठ गये। स्वाभाविक भाव है । इसमें भद्रता और ममहम झेंप रहे थे। हमने उनसे कहा कि "इनके ताका भाव केवल दिखानेके लिए ही था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522828
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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