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________________ माताका पुत्रको जगाना। Cultimthitthilimumtititimum सूक्तिमुक्तावलीकी जो प्रशस्ति है, वह बहुत माताका पुत्रको जगाना। ही विलक्षण है । देखिए:अभजदजितविद्यो वादिवादीन्द्रवज्रो (ले०-श्रीयुत पं० रामचरित उपाध्याय ।) नृपतिविबुधवन्द्यो गौरसेनाधिकंजे । मधुकरसमता यः सोमदेवेन तेन व्यरचि मुनिपराज्ञा सूक्तिमुक्तावलीयम् ॥ नभोऽङ्कमें तारक-वृन्द खोगया, इत्याचार्य सोमदेवविरचितं सूक्तिमुक्तावली शास्त्र समाप्त। निशेश भी तेज-विहीन होगया। ___ डा० भाण्डारकरने अपनी सन १८८२-८३ मनोहरा मोदमयी हुई दिशा, की संस्कृत पुस्तकोंकी रिपोर्टमें सूक्तिमुक्ताव उठो उठो पुत्र ! रही नहीं निशा ॥ लीकी जो दो प्रतियाँ लिखी हैं उनमेंकी भी ललाम है पूर्वदिशाऽऽस्य-लालिमा, एक प्रतिमें यही पद्य लिखा है । यह पद्य परन्तु है पश्चिम-भाग-कालिमा। सूक्तिमुक्तावलीका वह अन्तिम पद्य परिवर्तित विलोकिए कोतुक है बड़ा भला, करके गढ़ा गया है जिसमें अजितदेव, उठो उठो पुत्र ! प्रभात हो चला ॥ विजयसिंह और ग्रन्थकर्ता सोमप्रभाचार्यका स्पष्ट वर्णन है। साफ मालूम होता दिनेश आना अब चाहता यहाँ, है कि यह किसी सम्प्रदायमोहमुग्ध महा. सरोज-संघात विकाश पा रहा। उठो उठो पुत्र ! तमोऽवसान है, त्माकी कारीगरी है । मालूम नहीं कौनसे प्रमाद-सेवा दुखका निधान है। गौरसेनशिष्य सोमदेवकी ख्याति बढ़ानेके लिए यह प्रयत्न किया गया है । अस्तु । इससे न चन्द्रमा नष्ट हुआ समग्र है, हम सिर्फ यह बतलाना चाहते हैं कि वि० तमोनिहन्ता दिननाथ व्यग्र है। संवत् १६३२ में भी-जब बनारसीदासजीका यही घड़ी है सुख-सिद्धिके लिए, उठो उठो पुत्र ! सुवृद्धिके लिए ॥ जन्म भी नहीं हुआ था-सूक्तिमुक्तावलीको दिगम्बर ग्रन्थ बनानेका प्रयत्न हो चुका था, शशी कलंकी गिरता न क्यों कहो ? तब यदि बनारसीदासजीके हाथमें भी कोई घमण्डियोंका अवसान क्यों न हो? ऐसी प्रति आई हो जिसमें सोमप्रभको दिगम्बर इसी लिए आज जगा रही तुम्हें, लिखा हो तो कुछ आश्चर्य नहीं है। स्वधर्ममें पुत्र ! लगा रही तुम्हें । __ इस तरह हमें भी यह ग्रन्थ एक श्वेता निशान्तके साथ निशेश भी चला, म्बराचार्यका बनाया हुआ ही प्रतीत होता मनो महीके सिरसे दली बला । है । पर यदि किसी सज्जनका ऐसा खयाल दिखा रही है वह क्या छटा भली, उठो उठो पुत्र! मधुव्रतावली ॥ हो कि-नहीं, यह दिगम्बरसम्प्रदायका ही ग्रन्थ है, तो उन्हें इस विषयके प्रमाण लिखकर द्विरेफ गाके जगको जगा रहे, भेजना चाहिए । वे बड़ी खुशीसे प्रकाशित . सुकर्ममें हैं सबको लगा रहे । न चूकिए पुत्र ! परार्थके लिए कर दिये जायेंगे। स्वबन्धुओंको उठिए उठाइए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522828
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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