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________________ ४६४ जैनहितैषी - कारिणी उदारता हमारे शास्त्रों में बारबार उपदिष्ट होने पर भी संकीर्ण साम्प्रदायिक बुद्धिजनित विद्वेष हमारे प्राचीन ग्रन्थों में जहाँ तहाँ प्रकट हुआ है; किन्तु आजकल हमने उस संकीर्णता की क्षुद्र मर्यादा अतिक्रम करके यह कहना सीखा है— यं शैवाः समुपासते शिव इति ब्रह्मेतिवेदान्तिनो बौद्धा बुद्ध इति प्रमाणपटवः कर्त्तेति नैयायिकाः । अर्हन्नित्यथ जैनशासनरताः कर्मेति मीमांसकाः सोऽयं वो विदधातु वाञ्छितफलं त्रैलोक्यनाथो हरिः ॥ होकर " ईसाकी आठवीं सदीमें इसी प्रका रके महान् उदार भावोंसे अनुप्राणित जैनाचार्य भट्ट अलङ्कदेव कह गये हैं:यो विश्वं वेद वेद्यं जननजलनिधेर्भङ्गिनः पारवा पौर्वापर्याविरुद्धं वचनमनुपमं निष्कलङ्कं यदीयम् । तं वन्दे साधुवन्द्यं सकलगुणनिधिं ध्वस्तदोषद्विषन्तं बुद्धं वा वर्द्धमानं शतदलनिलयं केशवं वा शिवं वा । " सम्पादकीय नोट-इस लेखमें हिन्दू-बौद्ध और जैनधर्मके विषयमें जो तुलनात्मक पद्धति से विचार किया गया है और दोनोंमें जो समानता बतलाई गई है, उसपर हमारे समाज के विद्वानोंको विचार करना चाहिए और जो भ्रम हों उन पर प्रकाश डालना चाहिए। - आज हमें अपने विचार प्रकट करने चाहिए और आनेवाले दूसरे दिन उन पर विशेषरूपसे प्रकाश पड़नेपर यदि उनमें भ्रम मालूम हो तो उन्हें बदल देना चाहिए, परित्याग कर देना चाहिए अथवा उन्हींको परिमार्जित करके रखना चाहिए | — 'राल्फ वाल्डो ट्राइन । —जो मनुष्य कभी अपने मन्तव्यों को नहीं बदलते, वे सत्यकी अपेक्षा अपने आपको विशेष चाहते हैं । - ' जोबर्ट Jain Education International Somers Sum काश्मीरका इतिहास | ( ले०-श्रीयुत बाबू सुपार्श्वदास गुप्त बी. ए. । ) ( गतांक से आगे । ) गोनन्दीय वंश ( ११८२ - १८० बी. सी. । ) प्रथम अभिमन्यु के पश्चात् तृतीय गोनन्द राज्यका अधिकारी हुआ । यही गोनन्दीय वंशका संस्थापक माना जाता है । इसका भूतपूर्व प्रथम और द्वितीय गोनन्दोंके साथ कुछ सम्बन्ध था या नहीं, यह नहीं मालूम होता । यह भी आश्चर्यजनक ही है कि, प्रथम दो गोनन्दोंको छोड़कर तृतीय गोनन्द अपने वंशका चलानेवाला. कहा जाता है । संभवतः इसका कारण यह हो सकता है कि, इसके वंश में जितने राजे हुए हैं, सब पिता पुत्र, हैं। दूसरे वंशका कोई राजा इसमें शामिल नहीं है । डाक्टर स्टाइन इसके वंशको ऐतिहासिक मानते हैं, पर इसको नहीं । निस्सन्देह जिस वंशने एक हजार वर्षोंतक राज्य किया और जिसमें मिहिरकुल जैसा प्रसिद्ध ऐतिहासिक पुरुष हुआ, उसे अनैतिहासिक बताना ठेढ़ी खीर है । पर समझसें नहीं आता कि, जब गोनन्दीय वंशको ऐतिहासिक मानते हैं, तब वंशप्रवर्तक गोनन्दको ऐतिसासिक क्यों नहीं माना जाय । यह दूसरी बात है कि, उसके सम्बन्ध में राजतरंगिणीमें जो दो एक अलौकिक बातें लिखी हैं, वे विश्वसनीय न हों । राजतरंगिणी के अनुसार वह बौद्ध धर्मका विना For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522828
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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