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________________ Ammmmmmmmmmm काश्मीरका इतिहास ४६५ शकर्ता और ब्राह्मण धर्मका उद्धारकर्ता हुआ राजाने उसे देख पाया और वह उसकी है। ब्राह्मणधर्मके पुनर्जीवित होनेसे देशमें सुन्दरतापर मुग्ध हो गया । जब बहुत कोसंजीवनी शक्तिका प्रवेश और राज्यमें प्रीतिका शिश करने पर भी वह उसके हाथ न आई, आविर्भाव हुआ । प्राचीन ढंगसे पूजा पाठ तब उसने अपने किसी नौकरको उसके घर होने लगे । कल्हण लिखता है कि, जब उसे बलपूर्वक पकड़ लानेको भेजा । स्त्री श्रमण नामक एक बौद्ध वैरागी उसकी स्त्री- पुरुषको जब नौकरके घरमें प्रवेश करनेकी को बहका कर ले गया, तब क्रोधमें आकर आहट मिली, तब वे दोनों घरके पीछेकी उसने हजारों विहारोंको नष्ट कर डाला और खिड़कीके रास्ते निकल भागे । अन्तमें हजारों गाँव ब्राह्मणोंको दान दे दिये । इसने नरको अपने कुकर्मका फल भोगना पड़ा ११८२ से ११४७ बी. सी तक ३५ वर्ष और उसका धर्मात्मा लड़का सिद्ध सिंहासराज्य किया। इसके बाद इसके पुत्रपौत्रादि नका उत्तराधिकारी हुआ । नरने वितस्ता चार राजे हुए, जिन्होंने ११४७ से ९९३ नदीके किनारे चक्रधर गाँवके पास बी. सी. तक १५४ वर्ष राज्य किया । एक सुन्दर नगर बसाया था, जिसका इनके नाम प्रथम विभीषण, इन्द्रजीत, रावण नाम उसने नरपुर रक्खा । यह नगर आधु और द्वितीय विभीषण हैं। राजतरंगिणीमें निक विजबहोर ( वृजविहार) कस्बेके पास इनके बारेमें कोई ऐसी बात नहीं, जो उल्लेख था । इस स्थानको देखने और यहाँसे निकले योग्य है । वास्तवमें कल्हणने इनके सम्बन्धमें हुए खण्डहरों पर गौर करनेसे विश्वास कुछ लिखा ही नहीं है। होता है कि, किसी समय यहाँ एक सुन्दर नगर अवश्य था। नरके उत्तराधिकारी सिद्धद्वितीय विभीषणके बाद उसका पुत्र प्रथम के विषयमें केवल इतना ही लिखा है, कि नर (किन्नर) सिंहासनका स्वामी हुआ। उसन वह अपने पिताके समान कुलांगार नहीं बल्कि ९९३ से ९५२ बी. सी तक ४१ वर्ष एक धर्मात्मा और सत्यव्रत राजा था। लिखा राज्य किया । कल्हणने इसका बड़ा लम्बा है कि, वह धर्मबलसे सशरीर स्वर्गको चौडा वृत्तान्त दिया है । इमारतें आदि बना- चलागया । उसने ९५२ से ८९२ बी. कर इसने काश्मीरकी शोभा बढ़ाई । प्रेम सी. तक ६० वर्ष राज्य किया । उसके बाद पाशमें पड़कर इसने एक ऐसा अनुचित उत्पलाक्ष, हिरण्ययक्ष, हिरण्यकुल और कार्य किया जिससे इसका सर्वनाश हो वसुकुल नामक चार साधारण राजे हुए, गया । लिखा है कि, किसी नाराको एक जिनके विषयमें राज्यकालके सिवा और कुछ अति सुन्दर कन्या थी, जिसका विवाह, नहीं लिखा है । इन्होंने ७०४ बी. सी. एक ब्राह्मणसे हुआ था । एकवार अचानक तक १८८ वर्ष राज्य किया । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522828
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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