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________________ ४५६ SARAMBIRRAIMADIATI MATAINIK जैनहितैषीmmmitim हुयेनसंगका भारतभ्रमण आदि जो प्राचीन जैनधर्म और जैनदर्शनने क्या प्रभाव डाला इतिहासकी निर्विवाद बातें हैं उनका बहुत है, इसका इतिहास लिखनेके समग्र उपबड़ा भाग बौद्धधर्मके साथ मिला हुआ है। करण अब भी संग्रह नहीं किये गये हैं। पर भारतके कीर्तिशाली चक्रवर्ती राजाओंने बौद्ध- यह बात अच्छीतरह निश्चित हो चुकी है धर्मको राष्ट्रीयधर्मके रूपमें ग्रहण किया था, कि जैनविद्वानोंने न्यायशास्त्रमें बहुत अधिक इसलिए एक समय हिमालयसे लेकर कुमारी उन्नति की थी । उनके और बौद्धनैयायितककी समस्त भारतभमि पीले कपडोंसे रंग कोंके संसर्ग और संघर्षके कारण प्राचीन गई थी। किन्तु भारतीय इतिहासमें जैनधर्मने न्यायका कितना ही अंश परिवर्जित और अपना प्रभाव कहाँतक विस्तृत किया था, परिवर्तित किया गया और नवीन न्यायके यह अबतक भी मालूम नहीं हुआ है । रचनेकी आवश्यकता हुई । शाकटायन आदि भारतके अनेक स्थानोंमें जैनकीर्तिके जो वैयाकरण, उमास्वाति, सिद्धसेन दिवाकर, अनेक ध्वंसावशेष वर्तमान हैं उनके सम्ब- भट्टाकलङ्कदेव आदि नैयायिक, टीकाकृत्कुन्धमें अच्छी तरह अनुसन्धान करके ऐति- लरवि मल्लिनाथ, कोषकार अमरसिंह, अभिहासिक तत्त्वोंके खोजनेकी कोई उल्लेख योग्य धानकार, हेमचन्द्र, गणितज्ञ महावीराचार्य चेष्टा नहीं हुई। हाँ, कुछ वर्षोंसे साधारण आदि विद्वान, जैनधर्मावलम्बी थे । भारतीय चेष्टा हुई है। महसूर राज्यके श्रवणबेलगुल विचार-जगत्, इन सबका बहुत कुछ ऋणी है । नामक स्थानके चन्द्रगिरिपर्वत पर जो थोड़ेसे “अच्छी तरह आलोचना न होनेके कारण शिलालेख प्राप्त हुए हैं, उनसे मालूम होता अबतक जैनधर्मके विषयमें लोगोंके तरह है कि मौर्यवंशके प्रतिष्ठाता महाराज चन्द्रगुप्त तरहके ऊँटपटाँग खयाल हो रहे थे । कोई जैनमतावलम्बी थे । इस बातको मि. विन्सेंट कहता था यह बौद्धधर्मका ही एक भेद है। स्मिथने अपने भारतेतिहासके तृतीय संस्करण कोई कहता था कि हिन्दूधर्ममें जो अनेक ( १९१४ ) में लिखा है, परन्तु इस विष- सम्प्रदाय हैं, उन्हीं से यह भी एक हैं जिसे यमें अबतक सब विद्वानोंकी एक राय नहीं महावीरस्वामीने प्रवर्तित किया था । कोई हुई है। जैनशास्त्रोंमें लिखा है कि महाराज कोई कहते थे कि जैन आर्य नहीं है, क्योंकि चन्द्रगुप्त छट्टे ( पाँचवें ? ) श्रुतकेवली भद्र- वे नग्नमूर्तियोंको पूजते हैं। जैनधर्म भारतके बाहुके द्वारा जैनधर्ममें दीक्षित हुए थे और मलनिवासियोंके किसी एक धर्मसम्प्रदायका महाराज अशोक भी पहले अपने पितामह- . १-२ लेखक महाशयका यह भ्रम है। कालिदास के ग्रन्थों के प्रसिद्ध टीकाकार मल्लिनाथ और कोषकार उन्होंने जैनधर्मका परित्याग करके बौद्धधर्म अमरसिंह ये दोनों ही जैन नहीं थे । मल्लिनाथ वेदाग्रहण कर लिया था । भारतीय विचारोंपर नुयायी और अमरसिंह बौद्ध थे। -सम्पादक । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522828
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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