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________________ @eeeeeeeeeeeeeeee@@@@ जैनधर्म और जैनदर्शन । පළඳපළලලලලලලලලලල कलकत्तेसे ' मानसी और मर्मवाणी' ज्ञान बहुत ही परिमित है । स्कूलपाठ्य इतिनामकी एक उच्च कोटिकी बंगला मासिक- हासोंके एक दो पाराग्राफोंमें महावीरप्रचारित पत्रिका निकलती है । नाटोर-नरेश महाराज जैनधर्मके सम्बन्धमें जो अतिशय संक्षिप्त श्रीजगदिन्द्रराय और बाबू प्रभातकुमार विवरण रहता है, उसको छोड़कर हम कुछ मुखोपाध्याय बार-एट-ला उसके सम्पादक हैं। नहीं जानते । जैनधर्मसम्बन्धी विस्तृत आलोइसकी गत आषाढ़ और श्रावणकी दो संख्या- चना करनेकी लोगोंकी इच्छा भी होती थी, ओंमें जैनधर्म और दर्शन' शीर्षक एक पर अभीतक उसके पूर्ण होनेका कोई विशेष विचारपूर्ण लेख प्रकाशित हुआ है जिसके सुभीता न था । कारण दो चार ग्रन्थोंको छोड़ लेखक श्रीयुत अम्बुजाक्ष सरकार एम. ए. कर जैनधर्मसम्बन्धी अगणित ग्रन्थ अभीबी. एल. हैं । पूरा लेख लगभग १५ पृष्ठोंमें तक अप्रकाशित थे; भिन्न भिन्न मठोंके महन्त समाप्त हुआ है । हम यहाँ अपने पाठकोंके अपने मठोंके गुप्तगृहोंमें जैनग्रन्थोंको छुपाये लिए उसके केवल महत्त्वपूर्ण अंशोंका अनुवाद हुए थे, इसलिए पाठ करने या आलोचना प्रकाशित करते हैं। करनेके लिए वे दुर्लभ थे। " पुण्यभूमि भारतवर्षमें हिन्दू, बौद्ध “बौद्धधर्मके समान जैनधर्मकी आलोऔर जैन इन तीन प्रधान धर्मीका अभ्युत्थान चना क्यों नहीं हुई, इसके और भी कई हुआ है। यद्यपि बौद्धधर्म भारतके अनेक कारण हैं । बौद्धधर्म पृथिवीके एक तृतीयांश सम्प्रदायों और अनेक प्रकारके आचारों लोगोंका धर्म है, किन्तु भारतके ३० करोड़ व्यवहारोंमें अपना प्रभाव-अपनी छाप छोड़ लोंगोंमें जैनधर्मावलम्बी केवल मात्र १४ लाख गया है; परन्तु वह अपनी जन्मभूमिसे खदेड़ ( वास्तवमें १३ लाखसे भी कम ) हैं । इसी दिया गया है और सिंहल, ब्रह्मदेश, तिव्वत, कारण बौद्धधर्मके समान जैनधर्मके गुरुत्वका चीन आदि देशोंमें वर्तमान है। इस समय किसीको अनुभव नहीं होता । इसके सिवाय हमारे देशमें बौद्धधर्मके सम्बन्धमें यथेष्ट भारतमें बौद्धप्रभाव विशेषताके साथ परिस्फुट आलोचना होती है। परन्तु जैनधर्मके विष- है। इसलिए भारतके इतिहासकी आलोचयमें अब तक कोई भी उल्लेख योग्य आलो- नामें बौद्धधर्मका प्रसङ्ग स्वयं ही आकर उपचना नहीं हुई। जैनधर्मके सम्बन्धमें हमारा स्थित हो जाता है। अशोकस्तम्भ, चीनयात्री Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522828
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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