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भद्रबाहु-संहिता।
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“ पाटनके किसी नये या पुराने भंडारमें भद्र- द्वारा कल्पित मालूम होता है । संहिताके पहले बाहु-संहिताकी प्रति नहीं है । गुजरातके या अध्यायमें ग्रंथ भरमें क्रमशः वर्णनीय विषयोंकी मारवाडके अन्य किसी प्रसिद्ध भंडारमें भी जो उपर्युल्लिखित सूची लगी हुई है और जिसका इसकी प्रति नहीं है। श्वेताम्बरोंके भद्रबाहुचरि- अनुवाद अनुवादकने भी दिया है उससे इस तोंमें उनके संहिता बनानेका उल्लेख मिलता है; स्तबकका प्रायः कुछ भी सम्बंध नहीं मिलता। परन्तु पुस्तक अभीतक नहीं देखी गई।" उसके अनुसार इस स्तबकमें मुहूर्त, तिथि, करण, गुजराती अनुवाद ।।
निमित्त, शकुन, पाक, ज्योतिष, काल, वास्तु,
- इंद्रसंपदा, लक्षण, व्यंजन, चिह्न, ओषधि, सर्व संहिताके इस गुजराती अनुवादके साथ ।
साथ निमित्तोंका बलाबल, विरोध और पराजय, इन मलग्रंथ लगा हुआ नहीं है । प्रस्तावनाम लिखा विषयोंका वर्णन होना चाहिए था, जो नहीं है। है कि “ यह अनुवाद श्रावक हीरालाल हंस
उनके स्थानमें यहाँ राशि, नक्षत्र, योग, ग्रहस्वराजजीका किया हुआ है, जिन्होंने माँगने पर भी
रूप, केतुको छोड़कर शेष ग्रहोंकी महादशा, मूलग्रंथ नहीं दिया और न प्रयत्न करने पर
राजयोग, दीक्षायोग, और ग्रहोंके द्वादश भावोंका किसी दूसरे स्थानसे ही मूलग्रंथकी प्राप्ति हो ।
फल, इन बातोंका वर्णन दिया है । चूँकि यह सकी । इससे समूल छापनेकी इच्छा रहते भी
अनुवाद मूलके अनुकूल नहीं था शायद इसी लिए यह अनुवाद निर्मूल ही छापा गया है।” यद्यपि
अनुवादकको मूल ग्रंथकी कापी देनेमें संकोच हुआ इस अनुवादके सम्बंधमें मुझे कुछ कहनेका हो । अन्यथा दसरी कोई वजह समझमें नहीं अवसर नहीं है; परन्तु सर्व साधारणकी विज्ञप्ति आती । प्रकाशकको भी अनुवाद पर कुछ संदेह हा और हितके लिए संक्षेपसे, इतना जरूर कहूँगा गया है और इसीलिए उन्होंने अपनी प्रस्तावनाम कि यह अनुवाद सिरसे पैरतक प्रायः गलत लिखा है किमालूम होता है । इस अनुवादमें ग्रंथके दो
“आ भाषांतर ' खरी भद्रबाहुसंहिता' नामना स्तबक (गुच्छक ) किये हैं, जिनमें पहले स्तब- ,
ग्रंथर्नु छ एम विद्वानोनी नजरमां आवे तो ते बाबतनो कमें २१ अध्यायोंका और दूसरेमें २२ अध्या
व्या. मने अति संतोष थशे, परंतु तेथी विरुद्ध जो विद्वायोंका अनुवाद दिया है । पहले स्तबकका नोनी नजरमां आवे तो हुँ तो लेशमात्र ते दोषने पात्र मिलान करनेसे जान पड़ता है कि अनुवादक नथी. में तो सरल अंतःकरणथी आ ग्रंथ खरा ग्रंथजगह जगहपर बहुतसे श्लोकोंका अनुवाद - भाषांतर छ एम मानी छपाव्यो छे तेम छतां विद्वानोछोड़ता, कुछ कथन अपनी तरफसे मिलाता नी नजरमां मारी भूल लागे तो हुं क्षमा मागं छु ।”
और कुछ आगे पीछे करता हुआ चला गया इस प्रस्तावनामें प्रकाशकजीके उन विचाहै। शुक्रचारके कथनमें उसने २३४ श्लोकोंके रोंका भी उल्लेख है जो मूलग्रंथके सम्बंध स्थानमें सिर्फ पाँच सात श्लोकोंका ही अनुवाद इस अनुवाद परसे उनके हृदयमें उत्पन्न हुए हैं दिया है। मंगलचार, राहुचार सूर्यचार, चंद्र- और जो इस प्रकार हैं:चार और ग्रहसंयोग अर्घकाण्ड नामके पाँच “ श्रीबराहमिहिरे करेली वाराहीसंहिता अति अध्यायोंका अनुवाद कतई छोड़ दिया है। उनका विस्तारयुक्त ग्रंथ छे, तेनां प्रमाणमां आ उपलब्ध ग्रंथमें नाम भी नहीं है । रही दूसरे स्तबककी थयेलो भद्रबाहुसंहिता ग्रंथ अति स्वल्प छे. श्रीभद्रबात, सो वह बिलकुल ही विलक्षण तथा अनुवादक बाहुस्वामि जेवा श्रुतकेवली पुरुषे ज्योतिष विषयनो
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