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________________ ५८० wwwwwwwww जैनहितैषी ना की है। पर्युषणपर्वको पर्युपासनाका परिचय करानेवाला, आत्मिक जीवनकी टेव डालनेवाला, एक पाठ-एक अभ्यास पाठ (Exercise) . समझना चाहिए। . मेरी समझमें, विभावके वातावरणमें ३६५ दिन फिरनेवाले या अस्वाभाविक जीवन व्यतीत करनेवाले मनुष्यको केवल दश दिनोंमें स्वाभाविक जीवनका परिचय करानेके लिए—आन्तर्जीवनका अभ्यास अथवा टेव डालनेके लिए ही पर्युषणपर्वकी योजना की गई है। इन दश दिनोंमें जिस प्रकारका जीवन व्यतीत किया जाता है, उसी प्रकारका जीवन व्यतीत करनेकी टेव हमेशको लिए पड़ जाय तो मनुष्य कृतकृत्य हो जाय । ___ यहाँ इस प्रश्नका खुलासा करनेकी आवश्यकता है कि पर्युषण पर्वके लिये भाद्रपदका महीना ही क्यों नियत किया गया ? यह समय किसी ऐतिहासिक घटनाके स्मरणार्थ नहीं चुना गया है, अर्थात् न तो इन दिनोंमें पहले किसी महान् पुरुषका कोई कल्याणक हुआ है और न कोई विशेष स्मरणीय धार्मिक घटना हुई है। अतः मेरी समझमें तो इस चुनावका या पसन्दगीका कारण नैसर्गिक सौन्दर्य है। अर्थात् इस समय प्रकृतिके सारे पदार्थ आर्द्रता, नवीनता, सौन्दर्य और शक्ति प्राप्त करते हुए जान पड़ते हैं । सारा जगत् हँसता-खिलता-विकसता हुआ मालूम होता है । ये सब संयोग आत्मविकासके विचारोंके लिए बहुत ही अनुकुल हैं और इस लिए संभव है कि पर्युपासना, आत्मरमणता या देवीजीवनका परिचय करानेके कार्यके लिए यह समय पसन्द किया गया हो । लोगोंको इस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522808
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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