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________________ पर्युषणपर्व अथवा पवित्र जीवनका परिचय । ५७९ लम्बी सजाकी अवधि बीत जानेपर जब वह जेलखानेकी अधेरी कोठरी से बाहर निकाला गया, तब उसने यह प्रार्थना की थी कि मुझे उसी अंधेरी कोठरीमें अपना शेष जीवन व्यतीत करनेकी आज्ञा दी जाय ! वर्षों के अभ्यासके कारण, आदत पड़ जानेके कारण वह स्थान ही उसे सुखरूप भासने लगा था और उसे छोड़कर प्रकाशमें आनेसे उसे दुःख होता था। बीड़ी सिगरेट चुरुट पीना और तमाखू खाना पहले तो बुरा मालूम होता है-इनके पीने खानेसे एक तरहकी अरुचि होती है; परन्तु कुछ समयमें आदत पड़ जानेसे ये बलायें भी मजेदार जान पड़ने लगती हैं । डा० एटरबरी नामका विद्वान् कहता है कि " पहले मुझे दफ्तरके और हिसाबकी जाँच करनेके काममें जरा भी अच्छा न मालूम होता था-मेरी तबीयत ऊब जाती थी, परन्तु अब लगातार इसी काममें लगे रहनेसे मुझे इसमें बड़ा आनन्द आता है।" इन सब दृष्टान्तोंसे लार्ड बेकनके ये वाक्य सर्वथा सत्य मालूम होते हैं कि “जो चीज़ हमें पहले बुरी और कठिन मालूम होती है वही चीज़, जब हमारे अभ्यासमें आ जाती हैआदतमें दाखिल हो जाती है, तब इतनी आनन्ददायक स्वाभाविक और सुगम हो जाती है कि उतनी और कोई चीज नहीं होती ! " मनुष्यस्वभावकी रचनाका यह रहस्य--यह छुपी हुई कल जान लेनेसे मनुष्यको एक प्रकारका आश्वासन मिलता है । वह इस विश्वासको दूर कर सकता है कि धर्ममय या पवित्रजीवन बहुत कठिन है और. आदत डालनेका प्रयत्न करने लगता है। जगत्के अकारणबन्धु तीर्थकरोंने भी इस आदतके डालनेके लिए ही पर्युषणपर्वकी योज Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522808
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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