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इतिहास-प्रसङ्क।
इस चरितके आरंभमें लिखा है कि श्रीसोमदेव और वादिराजसूरिने जो यशोधरचरित बनाये हैं वे अति कठिन हैं-बालकोपयोगी नहीं. है, इसलिए यह ग्रेथ बालकोंके-मंदबुद्धियोंके-हितार्थ रचा जाता है।
जिस प्रतिपरसे यह नोट लिखा गया है वह सर्वत् १६७३ की अर्थात् ग्रंथकी रचनासे केवल ३६ वर्ष बादकी लिखी हुई है और प्रायः शुद्ध है । इस प्रतिसे यह भी मालूम होता है कि वादिचंद्रके पट्टपर महीचंद्र भट्टारक बैठे हैं और उन्हींको यह प्रति कराकर एक स्त्रीद्वारा समर्पित की गई है।
समाज सेवक---
जुगलकिशोर मुख्तार । नोट-इसके आगेके नोट सम्पादकके लिखे हुए हैं:
. . ( २४) सोमदेवके शिष्य वादिराज और वादीभसिंह। यशस्तिलकचम्पूके कर्ता सोमदेवसूरि बहुत बड़े विद्वान् हो गये हैं। उन्होंने यह ग्रन्थ शकसंवत् ८८१ में बनाया है। वे सकलतार्किकचक्रचूडामणि नेमिदेवके शिष्य थे। यशस्तिलक निर्णयसागर प्रेसकी काव्यमालामें · श्रुतसागरसूरिकृत टीकासहित छप गया है। दूसरे आश्वासनमें पृथक्त्वानुप्रेक्षाकी टीकामें श्रुतसागरसूरिने वादिराज महाकविका एक श्लोक उद्धृत किया है:
कर्मणाकवलिता जनिता जातः पुरान्तरजनङ्गमवाटे। कर्मकोद्रवरसेन हि मत्तः किं किमेत्यशुभधाम न जीवः ॥
और इसके बाद ही लिखा है-" स वादिराजोऽपि श्रीसोमदेचार्यस्य शिष्यः,
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