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________________ जैनहितैषी इस वाक्यमें संवत्का नाम क्रोधन दिया है, जो ६ ० संवसरोंमेंसे ५९ वें नम्बरका संवत् है । ज्योतिषशास्त्रानुसार शक संवत्में बारह जोड़कर साठका भाग देनेसे जो शेष रहे उससे क्रमशः प्रभवादि संवतोंका निश्चय किया जाता है। इस हिसाबसे शक संवत् ९४८ का नाम 'क्रोधन ' नहीं हो सकता । तब ठीक संवत् कौनसा होना चाहिए, यह जाननेकी जरूरत है। मेरी रायमें पार्श्वनाथचरितकी समाप्तिका यथार्थ शक संवत् ९४७ है। 'नग' शब्दसे सातकी संख्याका ग्रहण होना चाहिए, आठका नहीं । श्रीयुत वामन शिवराम आपटेने भी, अपने संस्कृत-इंग्लिशकोशमें, 'नग' का अर्थ The number seven, अर्थात् संख्या सात, दिया है। (२३). ___ वादिचन्द्रभट्टारक और यशोधरचरित । ज्ञानसूर्योदयनाटकके कर्ता वादिचंद्र भट्टारकने एक ' यशोधरचरित' भी बनाया है । यह चरित ज्ञानसूर्योदयनाटकके बाद रचा गया है । ज्ञानसूर्योदय नाटक सवंत् १६४८ में, मधूक ( महुआ ) नगरमें, बनाकर समाप्त किया गया है और इस चरितकी परिसपाप्ति, वादिचंद्रने, अंकलेश्वर ग्राममें रहकर, संवत् १६५७ में की है। जैसा कि इस चरितके अन्तिम दो पद्योंसे प्रगट है: तत्पदृविशदख्यातिर्वादिवृंदमतल्लिका। कथामेनों दयासिद्ध वादिचंद्रो व्यरीरचत् ॥८॥ अंकलेश्वरसुग्रामे श्रीचिन्तामणिमंदिरे। सप्तपंचरसाब्जाके वर्षेऽकारि सुशास्त्रकम् ॥ ८१॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522808
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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