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________________ इतिहास-प्रसङ्ग। ६२१ नहीं आया । संभव है कि इन ग्रंथों में पीछेसे कुछ क्षेपक श्लोक मिल गये हों और उनसे पद्योंकी यह संख्यावद्धि हुई हो। विद्वानोंको इस विषयका शीघ्र निर्णय करना चाहिए और यदि क्षेपकोंके मिलनेसे यह संख्या वद्धि हुई हो तो उन्हें मालूम करनेका यत्न भी करना चाहिए । * (२२) पार्श्वनाथचरितका निर्माणकाल । श्रीवादिराज मुनिका बनाया हुआ — पार्श्वनाथचरित' नामका एक संस्कृत ग्रंथ है। श्रीयुत टी. एस्. कुप्पूस्वामी शास्त्रीने, यशोधरचरितकी भूमिकामें, लिखा है कि यह ग्रंथ ( पार्श्वनाथचरित ) शक संवत् ९४८ में बनकर पूर्ण हुआ है। तदनुसार दूसरे विद्वानोंने भी, विद्वद्रत्नमालादिमें, उसी शक संवत् ९४८ का उल्लेख किया है। शास्त्रीजीने इस संवत्की प्रमाणतामें स्वयं पार्श्वनाथचरितकी प्रशस्तिका निम्न वाक्य उद्धृत किया है: 'शाकाब्दे नगवार्धिरन्ध्रगणने संवत्सरे कोधने । मासे कार्तिकनाम्नि बुद्धिमाहिते शुद्ध तृतीया दिने ॥ सिंहे पाति जयादिके वसुमती जैनी कथेयं मया। निष्पत्तिं गमिता सती भवतु वः कल्याणनिष्पत्तये॥' * इसका भी नियम है कि शतकमें सौसे ऊपर अधिकसे अधिक कितने पद्य हो सकते हैं । शतक ही क्यों पञ्चाशत् ( पचासा ), पञ्चविंशतिका (पच्चीसी ), और अष्टक आदिके लिए भी नियम हैं। इस समय स्मरण नहीं परन्तु किसी ग्रन्थमें हमने यह नियम पढ़ा है। सौसे अधिक होनेपर क्षेपक आदिकी कल्पना ठीक नहीं। -सम्पादक। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522808
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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