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________________ ५९२ . जैनहितैषी• mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmwwwwwwwxxxmmmmmmww..... की दृष्टिमें और भी गिर जायेंगे-मानों वे यह बतला देंगे कि हम सम्पादकके कर्तव्यसे भी सर्वथा अज्ञान हैं। . __पहली किरणमें पं० झमनलालजी महाशयने जो पाण्डित्य दिखलाया था इस किरण-युगलमें पं० हरनाथजी द्विवेदीने उसका भी नम्बर ले लिया । द्विवेदीजीने इन लेखोंमें केवल अपनी मूर्खताहीकी हद नहीं बतलाई है किन्तु अपने आश्रयदाता सेठनीको भी कलशेपर चढ़ा दिया है। इस अनुवादमें जो भूले हैं वे इतनी भद्दी हैं कि उन्हें जानकर स्वयं सेठ पदमराजजी ही कह बैठेंगे कि हाय ! मुझे इन पण्डितोंने बड़ा धोखा दिया ! ___ यद्यपि अनुवादकी एक भी पंक्ति ऐसी नहीं है जिसमें कोई न कोई भूल न हो; परन्तु हम यहाँ केवल . वही अंश उद्धृत करेंगे जिससे पाठक सारे अनुवादकी उत्तमताका अनुमान कर सकें। पद्मपुराण । पद्मपुराणके प्रारंभमें ग्रन्थका संक्षिप्त कथासूत्र है । यह लगभग ५४ श्लोकोमें है। इसे इस ग्रन्थका संक्षिप्त सूचीपत्र कहना चाहिए । इसका पहला श्लोक यह है: पद्मवेष्टितसम्बधकारणं तावत्र च । त्रैशलादिगतं वक्ष्ये सूत्र संक्षेपि तद्यथा ॥४५॥ इसका भावार्थ यह है कि “ मैं यहाँ उस कथासूत्रको सक्षेपमें कहूँगा जिसमें पद्मचरित ( पद्मचेष्टित ) के कहेजानेका कारण बत• लाया है और जिसे त्रिशलाके पुत्र महावीर भगवान् आदिने प्रकट Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522808
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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