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जैन सिद्धान्त भास्कर
. जैन सिद्धान्तभास्कर |
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सरू
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भा स्करकी दूसरी तीसरी किरणमें जितने लेख हैं उनमें पद्मपुराण' और ' हरिवंश पुराण' शीर्षक दो लेख उसके सम्पादकक योग्यताको बहुत ही स्पष्टता से प्रकट करनेवाले हैं, इसलिए हम सबसे पहले उन्होंकी आलोचना करना चाहते हैं:इन लेखोंमें रविषेणाचार्यकृत पद्मपुराण और जिनसेनाचार्यकृत हरिवंशपुराणके मंगलाचरण, प्रशस्ति और कथासूत्रके श्लोक उद्धृत करके उनका अनुवाद लिख दिया गया है । अच्छा होता यदि सम्पादक महाशय अनुवाद प्रकाशित करनेकी कृपा न करते - इससे उनकी बहुत कुछ प्रतिष्ठा बनी रहती । ये अनुवाद साफ़ साफ़ बतला रहे हैं कि वे केवल संस्कृतज्ञानसे ही नहीं, विचारबुद्धिसे भी शून्य हैं । उनमें इतनी भी योग्यता नहीं कि अनुवादोंको पढ़कर यह जान लें कि इनमें कुछ दोष है या नहीं । दूसरोंसे लेख लिखवाने और लेख संग्रह करनेके सिवाय सम्पादकका यह भी कर्तव्य है कि वह दूसरोंके लेखोंकी जाँच कर सके - यह समझ सके कि वे प्रकाशित करने योग्य हैं या नहीं । पद्मपुराण और हरि - वंशके उक्त लेखोंके विषयमें सेठ पदमराजजी यह कहकर छुट्टी नहीं पा सकते कि उनका अनुवाद स्वयं हमने नहीं किया है, इसलिए हम उसके उत्तरदाता नहीं हैं । यदि ऐसा कहेंगे तो वे विद्वानों
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