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________________ छोड़कर घेरा ( Railing ) बना है। ऐसा ही पथ स्तूपके कुछ ऊपर चलकर गौखकी तरह बना है । सामने एक तोरण है; उसपर बड़ी उत्तम चित्रकारी है। इस तोरणके ऊपरकी आडी पटरियोंसे बीचमें एक माला लटक रही है। तोरण तक चढ़नेके लिए चार सीढ़ियाँ है । स्तूपके दायें बायें एक एक नग्न स्त्री स्तूपके सहारे सिर और कुहनी टेके आभूषण पहने बड़े अंदज़ासे खड़ी है । सीढ़ियों के दोनों ओर यह लेख है: "नमो अहंतानं फगुयशस नतकस भयाये शिवयशा ......इ......आ......आ......काये . आयागपतो कारितो अरहत पुजाये . अनुवाद-अर्हतोको नमस्कार । नृतक फगुयशा (फल्गुयशस) की स्त्री............शिवयशा (शिवयशस) ने अर्हतोंकी पूजाके निमित्त एक आयागपट बनवाया। .. ३-मथुराके अजायबघरमें एक आयागपट है। यह पट संपूर्ण है; कहींसे भी खंडित नहीं। इसमें स्तूपका एक बड़ा चित्र है। इससे जैनस्तूपोंकी शकलका अच्छा ज्ञान हो सकता है। ऊपरके आयागपटसे भी यह अधिक महत्त्वपूर्ण है । समान बातोंको छोड़कर इसकी विशेष बातोंका ही उल्लेख किया जाता है। इस स्तूपके इधर उधर दो बड़े और सुंदर स्तंभ हैं । एकके ऊपर चक्र है और दूसरेंके ऊपर सिंह है। स्तूपके दोनों ओर तीन तीन चित्र हैं। ऊपरके दो चित्र • उड़ते हुए हैं । ये नग्न हैं; कदाचित् मुनि होंगे। इनके नीचेके दो चित्र सुपर्ण अथवा किन्नर हैं; इनके पक्षियोंके समान नाखून, और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522797
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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