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________________ ५१६ निर्मित ' शब्दको साधारण दृष्टिसे देखें तो यह कहना पड़ेगा कि शक ७२ में भी यह स्तूप अतीव प्राचीन समझा जाता था-इसके बनानेवालेका लोगोंको पता ही न था । अतएव इसके बननेका समय ईसासे ६०० वर्ष पूर्व मानना कुछ भी अनुचित नहीं । अतएव भारतवर्षकी अबतक जितनी इमारतें मालूम हुई हैं उनमें यह स्तूप संभवतः सबसे प्राचीन है । एक और जैन स्तूप पर बहुत छोटासा लेख मिला है। वह ईसाकी तीसरी या चौथी शताब्दिका है। आयाग-पट । इन स्तूपोंके अतिरिक्त कई 'आयागपट' भी मिल चुके हैं जिन पर स्तूपोंके चित्र अंकित हैं। ये सब इस बातको पुष्ट करते हैं कि किसी समय जैनियोंमें भी स्तूप बनानेकी प्रथा खूब प्रचलित थी। मालूम होता है कुछ काल तक रहनेके बाद वह प्रथा उठ गई। आयागपट पाषाणके पट होते हैं। इनमेंसे दो चार पटोंके लेखोंसे मालूम होता है कि ये मंदिरोंमें अर्हतोंकी पूजाके लिए रखे जाते थे। इनमेंसे अधिकांशमें अहंतोंकी प्रतिमायें अंकित हैं और भी बहुतसे जैनधर्मसंबंधी चिह्न, स्वस्तिका, मछली इत्यादि बने हैं। इनके अतिरिक्त और भी अनेक चिह्न और बेलबूटे बने रहते हैं। इनकी शोभा और चित्रकारी देखते ही बनती है। यहाँ पर केवल उन आयागपटोंका वर्णन किया जाता है जिनपर स्तूपोंके चित्र अंकित हैं। १- एक आयागपटमें बीचमें एक तीर्थकरका चित्र है, नीचे भी एक ऐसा ही चित्र है, और ऊपर एक स्तूपका चित्र है। और भी बहुतसे स्त्रीपुरुषोंके चित्र बने हैं । इसका लेख मिट गया है। २-एक संपूर्ण आयागपटमें स्तूपका बड़ा चित्र दिया है, परन्तु इसका उपरी अंश खडित है। स्तूपके चारों तरफ प्रदक्षिणाश Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522797
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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