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________________ ५५२ मीठी मीठी चुटकियाँ। ... १ सेठोंकी गर्भपीड़ा। इन्दौरके सेठ एक साथ कई संस्थाओंका प्रसव करनेवाले हैं। बेचारे इस समय गर्भकी गहरी तकलीफ सहन कर रहे हैं । प्रसवकाल समीप है । हम चाहते हैं कि उनका यह कष्ट शीघ्र ही सन्तान मु. खनिरीक्षणके सुखमें परिणत हो जाय । २ इतिहासकी मर्यादाद्धि। जैन्तसिद्धान्त भास्करके पिछले दो अंकोंके लिए ऐतिहासिक सामग्री एकट्टी करनेमें, गुप्त बातोंका अनुसन्धान करनेमें और अनेक जटिल समस्याओंको सुलझानेमें उसके सम्पादक महाशयको इतना परिश्रम करना पड़ा है कि अब वे उसे त्रैमासिक रूपमें निकालना अच्छा नहीं समझते हैं-इससे इतिहास जैसे कठिन शास्त्रकी अवज्ञा होती है । उन्होंने निश्चय किया है कि अब वह वार्षिक रूपसे दर्शन दिया करेगा। परन्तु देखते हैं कि पिछले अंकको निकले हुए एक वर्षसे भी अधिक बीत चुका है । आश्चर्य नहीं जो इतिहासकी मर्यादा बढ़ानेके लिए उसका प्रत्येक अंक दो वर्षमें निकालना निश्चय किया गया हो। और कुमार देवेन्द्रप्रसादजीसे जो जैनमित्रके नोटिसमें बड़ी फुर्ती दिखला रहे थे । केफियत तलब की गई हो कि तुमने भास्करके जल्दी निकलनेकी सूचना क्यों प्रकाशित कराई। . ३ जैनगजटकी बेजोड़ कविता। यों तो सभी बातोंमें जैनगजट अपनी सानी नहीं रखता, परन्तु इन दिनों उसने कवितामें बड़ी तरक्की की है। आज कल उसमें कई नामी नामी कवियोंने लिखना प्रारंभ किया है। उसके एक कवि पिछले ३६-३७ अंकमें लिखते हैं: Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522797
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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