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व्यापारोंको देखकर हम मुग्ध हैं, जानते हो उसके नैतिक चरित्रकी क्या अवस्था है ? जर्मनीकी राजधानी बर्लिनमें एक Moalibt Prison नामका एक बड़ा भारी जेलखाना है। उसके अध्यक्ष डा. Finkler Burgh ने एक पुस्तक लिखी है जिसका नाम है-'जर्मनी देशमें कितने लोगोंको सजा हुई है ?' उसमें उन्होंने एक जगह लिखा है" जर्मन साम्राज्यमें जितने पुरुष हैं उनका छट्टा हिस्सा और जितनी स्त्रियाँ हैं उनका पच्चीसवाँ हिस्सा जर्मन-दण्डनीतिके किसी न किसी कानूनका भंग करनेसे दण्डित या सजा पाया हुआ है ! ” और एक जगह लिखा है--" जर्मनीमें इस समय दण्डित ( सजायाब ) व्यक्तियोंकी संख्या ३८ लाख ६९ हजार है। उनमें ३० लाख ६० हजार पुरुष और ८ लाख ९ हजार स्त्रियाँ हैं । १२ वर्षसे लेकर १८ वर्षकी उमर तकके बालकोंमें ४३ के पीछे एकके हिसाबसे और बालिकाओंमें २१३ के पीछे एकके हिसाबसे दण्डित हैं !" देखिए, कैसा विभीषिकामय व्यापार है !
यूरोपके और और देशोंका भी लगभग यही हाल है। थोडेसे उच्चश्रेणीके लोगोंके सिवाय वहाँकी शेष जनता दिनपर दिन पापपङ्कमें डूबती जाती है । फ्रान्सके पुरुष विवाह नहीं करना चाहते, स्त्रियाँ विवाह नहीं करती--सन्तानका कष्ट उठाना उन्हें पसन्द नहीं । विलासिताकी हद्द हो गई। . इन सब बातोंपर ध्यान देकर इन गुरुओंसे जो कुछ सीखो, वह अच्छी तरह सोचविचार कर सीखो,-इनके दुर्गुणोंको मत सखि लेना, नहीं तो फिर तुम्हारी दुर्दशाका ठिकाना न रहेगा-इस समय तो तुम्हारे पास भी दुर्गुणोंकी कुछ कमी नहीं है-इतने ही काफी हैं।
गुणग्राही।
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