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________________ हुए मथुराकी महत्ता कुछ कम न थी । फाहियान नामक चीनी प्रवासीने ई० सन् ४०० के लगभग भारतकी यात्रा की थी। उसे मथु-: रामें यमुनाके दोनों किनारों पर बौद्धोंके २० मठ मिले थे। प्रत्येक मठमें * स्तूप, मंदिर इत्यादि बने हुए थे और इन मठोंमें सब मिलकर ३ हजार बौद्ध श्रमण रहते थे। इसके पश्चात् हुएनसांगको भी जो यहाँ सातवीं शताब्दिके आदिमें आया था इतने ही बौद्ध मठ मिले; परन्तु उसके अनुमानसे उनमें बौद्ध श्रमण सिर्फ २ हज़ार थे। हुएनसांगने ब्राह्मणोंके भी कई मदिरोंका उल्लेख किया है। अतः इस बातमें अब कोई संदेह नहीं रहा है कि मथुरामें एक समय वैदिक, बौद्ध और जैन तीनों मत प्रचलित थे । परन्तु अब वे मठ, स्तूप और मंदिर जिनका चीनी प्रवासियोंने उल्लेख किया है कहाँ हैं ? वे सब कालके गालमें चले गये। मथुरामें कई स्थान खोदे गये हैं । गोवर्धन दरवाजेसे एक मील पर एक टीला है, जिसको 'कंकाली टीला' बोलते हैं। इस टीले पर 'कंकाली देवी का मंदिर है।मंदिर क्या है एक छोटीसी झोपडीमें एक स्तंभका टुकड़ा रक्खा है। इस देवीके नाम परसे ही इस टीलेका नाम पड़ गया है । यह टीला कई बार खोदा जा चुका है। पहले यहाँ सन् १८७१ में खुदाईका काम हुआ था । डाक्टर फुहररको सन् १८८८-९१ ई०में इस टीलेमें अनेक महत्त्वपूर्ण पदार्थ मिले । इस टीले पर खुदाईके चिह्न अब बिल्कुल नहीं मालूम होते । जहाँ तहाँ वृक्ष खड़े हैं और ऐसा मालूम होता है कि यह टीला पहले कभी खुदा ही नहीं था । जब मैंने इस स्थानको पहले पहल देखा, तब मुझे भी बड़ी मुशकिलसे विश्वास हुआ कि यह ' कंकाली टीला ' है। समय समय पर इस टीलेमेंसे जैनियोंकी अगणित चीजें निकली हैं । इसमें अब कोई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522797
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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