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जैनहितैषी ।
श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् ।
जीयात्सर्वज्ञनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥
१० वाँ भाग ] आषाढ़, श्री वी० नि० सं० २४४० । [९ वाँ अं०
जैन - स्तूप ।
भारतीय इतिहास के सम्बन्धमें ज्यों ज्यों अन्वेषण होते जाते हैं त्यों त्यों नई नई बातें हाथ लगती जाती हैं। भारतके भूगर्भमें बहुत कुछ ऐतिहासिक सामग्री छुपी हुई है । हमारी सरकारने अनेक प्राचीन 1 स्थानोंको खुदवाया है और उनमें बहुत से महत्त्वपूर्ण लेख और इमारतें मिली हैं । सर्व साधारणका अब तक यही विश्वास था कि 1 स्तूप केवल बौद्धोंने ही बनाये थे । परन्तु कई वर्ष हुए मथुराके ' कंकाली' टीले के खोदे जाने पर इस विचार में परिवर्तन करना पड़ा । इस अन्वेषण यह बात प्रकट हो गई कि जैनियोंने भी स्तूप बनाये थे । यद्यपि बौद्धोंके समान जैनियोंका एक भी स्तूप अब भारत भूमि पर विद्यमान नहीं है, तथापि अब तक जैनियोंके प्राचीन स्तूपोंके कई दृढ प्रमाण मिल चुके हैं । जैनियोंके स्तूप बौद्धोंके स्तूपोंसे बहुत कुछ मिलते जुलते थे ।
यह कहनेकी आवश्यकता नहीं है कि मथुरा कितना प्राचीन महत्त्वका क्षेत्र है । महाराज श्रीकृष्ण के समयकी बात तो दूर है केवल १५०० वर्ष
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