________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सम्राट अकबर और जैन
गुरु.
लेखक:- महता शिखरचंद्र कोचर, बी. ए., एलएल. बी. साहित्यशिरोमणि साहित्याचार्य, सिटी मेजिस्ट्रेट, बीकानेर.
सम्राट अकबर पर जैनधर्मके गुरुओंका विशेष प्रभाव पड़ा था । जिन जैन गुरुओंका प्रभाव उस पर मुख्यतः पडा उनका संक्षिप्त परिचय नीचे दिया जाता है
(१) हीरविजयसूरि - सन् १५८२ ई. में काबुल विजय करनेके पश्चात् सम्राट अकबर ने जैनाचार्य श्री हीरविजयसूरिकी प्रशंसा सुनी। उसने गुजरात के गवर्नर साहिबखां को इस आशयका फर्मान भेजा कि वह सूरिजीसे दरबार में जानेके लिये निवेदन करे । सूरिजी उन दिनों गंधार में थे । सूरिजीको जब साहिबखां द्वारा सूचना मिली; तब वे अहमदाबाद गए। वहां साहिबखांने उन्हें यात्रा के लिए सवारी तथा रुपए देने चाहे परन्तु सूरिजीने इसके लिये सधन्यवाद असमर्थता प्रकट की और कहा कि नियमानुसार जैन साधु ऐसी वस्तुओं का प्रयोग नहीं कर सकते । अतः वे पैदल ही आगरा गए, जहांपर इनका राजसी ठाटबाट के साथ स्वागत हुआ । सूरिजी पहले अबुलफजलसे मिले, जिस पर उनका अत्यन्त प्रभाव पड़ा । तत्पश्चात् वे अबुलफजके साथ सम्राट से मिले । सम्राट पर भी बहुत गहरा प्रभाव पडा । एक बार सम्राटने सूरिजीको पद्मसुन्दर नामक स्वर्गीय तपगच्छीय जैन साधुकाग्रन्थसंग्रह देनेके लिये अपनी उत्कट कामना प्रकट की । सूरिजीने पहिले तो अपनी असमर्थता प्रकट की, और कहा कि हम जितने ग्रन्थ स्वयं उठा सकते हैं उतने ही अपने पास रख सकते हैं । परन्तु सम्राट के अति आग्रह करने पर उन्होंने आगरामें 'अकवरीय भांडागार' नाम से ग्रन्थभंडार स्थापित करके वे ग्रन्थ रखवा दिये और उनके निरीक्षणका कार्यभार थानसिंह नामक जैन गहस्थको सोंप दिया । सूरिजी के सदुपदेश से सम्राटने पषणके आठ दिनोंमें समस्त साम्राज्य में जीव - हिंसा - निषेध करानेके लिये घोषणा करवा दी, जिसका उल्लेख " विजय - प्रशस्ति महाकाव्य " में है । चातुर्मास समाप्त होनेके पश्चात् सूरिजी सम्राटसे फिर मिले । उनके उपदेशसे सम्राटने फतहपुर सीकरीमें १२ योजन लम्बे विशाल सरोवर " डाबर "में मछलियां पकडनी बंद करवा दी । तत्पश्चात् सम्राटने सूरिजी के सदुपदेशसे पर्यूषणके दिनोंमें अपनी और से ४ दिन और जोडकर कुल १२ दिनोंके लिये ( अर्थात् भाद्रपद कृष्ण दशमीसे भाद्रपद शुक्ला षष्ठमी तक ) राज्यभर में जीव - हिंसा बंद कराव दी । कुछ समय पश्चात् नौरोजके दिन भी जीवहिंसा बंद की गई । सन् १५८४ ई. में सम्राटने सुरिजीको " जगद्गुरु " की उपाधि प्रदान की । सम्राट के अनुरोधसे सूरिजीने अपने शिष्य शान्तिचन्द्रजीको ' उपाध्याय ' पद पर प्रतिष्ठित किया, फिर सूरिजीने शान्तिचन्द्रजीको सम्राट के पास छोडकर स्वयं गुजरात की ओर प्रस्थान किया । सुरिजीका विशेष
For Private And Personal Use Only