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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८२ ] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [वर्ष १० वृत्तांत जाननेके लिए 'जगद्गुरु काव्य' 'कृपारस कोष' 'पुरीश्वर अने समाट' आदि ग्रन्थोंका अवलोकन करना चाहिये। ___ 'आईने अकबरी में लिखा है कि सम्राट अकबरने अपने दरबारके विद्वानोंको पांच श्रेणियोंमें विभक्त किया था। उसमेंसे प्रथम श्रेणीके विद्वानोमें हीरविजयसूरिजीका नाम अङ्कित है तथा पांचवी श्रेणीमें भानुचन्द्र एवं विजयसेनसूरिका नाम अङ्कित है। इन दोनोंका वर्णन आगे किया जायेगा। (२) शान्तिचन्द्र उपाध्याय-सम्राट अकबर पर इनका बहुत प्रभाव पड़ा था। इन्होंने सम्राटके लोकोपयोगी सत्कार्योंका वर्णन अपने 'कृपारसकोष' नामक सुन्दर संस्कृत काव्यमें किया है जिसमें १२८ श्लोक हैं । इन्होंने सम्राट अकबरको उपदेश देकर वर्षभरमें लगभग छः मास पर्यन्त हिंसा बंद करवाई थी। इसके अतिरिक्त उन्होंने सम्राटसे 'जजिया' नामक कर बंद करवानेके लिये भी फर्मान जारी करवाया था। तत्पश्चात् ये सम्राटकी अनुमति लेकर गुजरात चले गए और उनके पास भानुचन्द्रको छोड़ दिया। (३) भानुचन्द्र-ये और इनके शिष्य सिद्धिचन्द्र सम्राट अकबरके पास उसके शेष जीवनभर तक रहे और उसके पश्चात् सम्राट जहांगीरके पास भी रहे । सम्राट नब कभी आगरेसे बाहर जाते भानुचन्द्रको अपने साथ लेजाया करते थे। एक बार भानुचन्द्र सम्राटके साथ काश्मोर भी गए। ये सम्राट अकबरके समक्ष प्रति रविवार 'सूर्यसहस्रनाम'का पाठ किया करते थे। एकबार इन्होंने सम्राट अकबरको शत्रुञ्जय-तीर्थ परसे यात्रियों पर लगने वाला कर उठादेनेको कहा जिस पर सम्ाटने सन् १५९२ ई. में शत्रुञ्जय पर्वतका दानपत्र लिखकर हीरविजयसूरिको भेज दिया । सम्राटके अनुरोधसे हीरविजयसूरिने इन्हें भी 'उपाध्याय' पदसे अलंकृत किया था। इनका विशेष वर्णन जाननेके लिये इनके शिष्य सिद्धिचन्द्र द्वारा लिखित 'भानुचन्द्रचरित्र' नामक ग्रन्थका अवलोकन करना चाहिये । (४) सिद्धिचन्द्र-ये संस्कृत एवं फारसीके प्रकाण्ड विद्वान थे । इन्होंने 'भानुचन्द्र चरित्र' नामक एक उत्तम ऐतिहासिक संस्कृत काव्यग्रन्थकी रचना की है। जिससे इनके गुरु भानुचन्द्र व इनकी जीनकी पर विशेष प्रकाश पडता है । यह उच्च कोटिका विशुद्ध ऐतिहासिक ग्रन्थ है। श्रीमान जिनविजयजीके कथनानुसार यह ग्रन्थ राजतरंगिणी, पृथ्वीराजविजय, हम्मीर महाकाव्य, कुमारपालचरित्र, प्रबन्धचिन्तामणि, वस्तुपालचरित्र आदि उत्तम ऐतिहासिक ग्रन्थोंकी श्रेणीमें रखा जाना चाहिये। यह ग्रन्थ सिंघी जैन ज्ञानपीठ द्वारा संवत १९९७ में प्रकाशित हो चुका है । सिद्धीचन्द्रजो शतावधानी थे । सम्राट अकबरने इन्हें प्रसन्न होकर 'खुशफहम' की उपाधि प्रदान की थी। For Private And Personal Use Only
SR No.521614
Book TitleJain_Satyaprakash 1945 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1945
Total Pages38
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size19 MB
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