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यतियों को "क्रान्ति-पत्र" देते हए उन्होंने कहा कि यदि चाहें तो गच्छाधिप धरणेन्द्रसूरिजी इस पर सभी प्रमुख यतियों के साथ "सही" कर दें और इन कलमों पर जी-जान से आचरण करें। क्रान्ति-पत्र पर काफी बहसें हुईं, किन्तु राजेन्द्रसूरि तो अपने संकल्प पर अडिग थे, वे उसमें किंचित् परिवर्तन करने को तैयार न थे। उनकी निश्चलता का परिणाम यह हुआ कि उसे ज्यों-का-त्यों स्वीकार कर लिया गया और यतियों को अपने जीवन को तदनुरूप ढालने पर विवश होना पड़ा।
___ इस सम्पूर्ण क्रान्ति ने तत्कालीन श्रमण संस्कृति का रूप बदल दिया। लोग अब तक मानते थे कि यतियों का जीवन अत्यन्त औपचारिक है, समाज से उसका कोई सरोकार नहीं है। यतियों को भेंट देने, उनकी वन्दना करने, जीवन से मेल न खाने वाले प्रवचन सुनने और उनके निर्देशों का अक्षरशः पालन करने में ही अपने कर्तव्य की इतिश्री वे मानते थे; किन्तु अब राजेन्द्रसूरिजी ने “यति" की नये सिरे से परिभाषा कर दी। उन्होंने यति को धर्म और संस्कृति से तो मूलबद्ध किया ही, समाज के आचार-व्यवहार से भी बाँध दिया। उन्हें कहा गया कि समाज वही करता है, जो तुम्हारे आचार में हुआ देखता है। इस तरह राजेन्द्रसूरिजी ने धर्म
और समाज के बीच की टूटी कड़ी को जोड़ा और यतियों और श्रावकों के बीच सद्भावनापूर्ण सम्बन्धों की स्थापना की।
- क्रान्ति-पत्र की नौ कलमों में यतियों को जो निर्देश दिये गये थे, वे अत्यन्त स्पष्ट थे। इनमें जहाँ एक ओर वर्तमान यति-जीवन की मीमांसा और वर्णन था वहीं उसकी भावी रचना के स्पष्ट संकेत थे। इस क्रान्ति ने यतियों को पालखी से उतारकर यथार्थ की जमीन पर ला खड़ा किया । उन्हें निष्काम, निर्व्यसन और अप्रमत्त जीवन की ओर उन्मुख किया । अब तक यति-जीवन खाने-पीने-सोने में बीत रहा था, राजेन्द्रसूरिजी के इस क्रान्ति-पत्र ने उसे साधना के दुद्धर पथ पर ला खड़ा किया।
यतियों को पहली बार ऐसा अहसास हुआ कि यति-जीवन फूलों की शैया नहीं है, तीक्ष्ण काँटों की डगर है। यह कठोर तपश्चर्या का मार्ग है, साधनसुविधाओं का पन्थ नहीं है। जिसे औसतन आदमी के बलबूते का काम माना जा रहा था और जीवन से पलायन करने वाला कोई भी आदमी जिसमें प्रवेश पा जाता था, अब सही आदमी के लिए ही यति-जीवन के द्वार खुले रखे गये । इस नौ कलमी क्रान्ति-पत्र के स्वीकार के साथ ही राजेन्द्रसूरिजी ने जावरा में सम्पूर्ण क्रियोद्धार किया और समस्त परिग्रह का त्याग कर दिया। निरलस, अप्रमत्त, निष्काम उपासना अब उनके यति-मण्डल का अनुशासन बन गया। राजेन्द्रसूरिजी की सम्पूर्ण जीवन-चर्या "क्रान्ति-पत्र” का जीवन्त उदाहरण बनी। उन्होंने उसका अक्षरशः पालन कर यह सिद्ध कर दिया कि क्रान्ति-पत्र काल्पनिक नहीं है, उसकी हर धारा
तीर्थंकर : जून १९७५/८४
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