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'अभिधान-राजेन्द्र कोश' लगभग हजार पृष्ठ के प्रत्येक ऐसे सात भागों में प्रकाशित है, जिसमें अकारादिक्रम में प्राकृत शब्दों के संस्कृत अर्थ-व्युत्पति-लिंग और अर्थ जैनागम व अन्य ग्रन्थों में उपलब्ध सभी के विभिन्न संदर्भो की सामग्री से युक्त इस ग्रन्थराज को प्रामाणिक करने का महाभारत प्रयत्न किया गया है। जैनागमों का कोई ऐसा विषय नहीं है, जो इस कोश में प्राप्त न हो।"
____ -'जैन साहित्य नो इतिहास' "अभिधान-राजेन्द्र' विश्वकोश में प्रत्येक प्राकृत' शब्द का संस्कृत रूप, संस्कृत में विवरण, मूल ग्रन्थ में प्रयुक्ति का निर्देश तथा अन्य ग्रन्थों में विभिन्न अर्थों में प्रयुक्त प्रत्येक के अवतरणों की विविध विश्लेषणयुक्त विवेचन किया गया है। प्रस्तावना में श्रीहेमचन्द्रसूरि के प्राकृत व्याकरण पर श्रीमद्राजेन्द्रसूरि निर्मित टीका सहित 'प्राकृत व्याकृति' रखी गयी है। प्रायः सभी नामों के रूपाख्यानों का भी इसमें समावेश किया गया है। फिर भले ही साहित्य में वे उपलब्ध न भी हों, उदाहरणार्थ पंचमी एकवचन में 'युप्मद' के पचास रूप दिये गये हैं, जबकि अर्द्धमागधी-मागधी साहित्य में कदाचित ही कोई इन रूपों में से पाया जाता हो। इस विश्वकोश में जैन सिद्धान्त के प्रत्येक विषय के बारे में जो भी मूल ग्रन्थ या टीकाओं में उपलब्ध है वह सभी समाविष्ट है।
-'अर्द्धमागधी कोश', प्रथमभाग, प्रस्तावना
(पृष्ठ ४८ का शेष) नवोपलब्ध
यतीन्द्रसूरीश्वर, १९७२ कल्पसूत्र
त्यागमूर्ति (काव्य) १८८१; मालवी; मनि देवेन्द्रविजय मिश्रीलाल जैन, १९६७ के पास उपलब्ध
राजेन्द्र (काव्य) गणधरवाद
विद्याविजयजी, १९५७ १८९६; संस्कृत; मनि देवेन्द्रविजय राजेन्द्र कोष में 'अ' के पास उपलब्ध
मुनि जयन्तविजय 'मधुकर', १९७३ स्वगच्छाचार प्रकीर्ण
राजेन्द्र गुणमञ्जरी १८७९; मालवी-मारवाड़ी; मुनि
मुनि गलाब विजयोपाध्याय, १९३९ देवेन्द्र विजय के पास उपलब्ध
राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ सम्बन्धित
(अर्धजन्म-शताब्दी-महोत्सव पर प्रकाजीवन प्रभा (राजेन्द्र-जीवन-चरित्र)
शित), १९५७
संकेत-१. अ. रा. को-१, परि-प. (अभिधान राजेन्द्र कोष भाग १ परिचय- पृष्ठ),
२. रा. स्मा. ग्रं. (श्रीमद् राजेन्द्र सूरि स्मारक ग्रन्थ); ३. ग्रन्थों का रचना-काल ईस्वी सन् में दिया गया है ।
तीर्थकर : जून १९७५/६२
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