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________________ चमत्कृत किया है । 'अभिधान राजेन्द्र' की रचना के पश्चात् स्थानकवासी मुनिवर श्रीरत्नचन्द्रजी ने 'जिनागम शब्दकोश' आदि कोश, आगमोद्वारक आचार्य श्री सागरानन्दसूरि ने अल्प परिचित सैद्धान्तिक शब्दकोश, पं. हरगोन्विददास ने 'पाइअसहमहrat' आदि प्रकृत भाषा के शब्दकोश तैयार किये हैं, किन्तु इन सबकी कोशनिर्माण की भावना के बीजरूप आदि कारण तो श्रीमद्राजेन्द्रसूरि एवं उनका निर्मित अभिधान - राजेन्द्र कोश ही है ।" - मुनि पुण्यविजय "आचार्य राजेन्द्रसूरिजी उन महापुरुषों में से हैं जिनका जीवन ज्ञान की अखण्ड उपासना में लीन था । चारित्र के साथ ज्ञानबल बहुत तेजस्वी था । अपने जीवन में उन्होंने लगभग ६१ ग्रन्थों की रचना की । उनकी ज्ञानोपासना विविध क्षेत्रों में गतिमान रही है। जन साधारण-हित उन्होंने बहुतेरे ग्रन्थों की रचना लोक मालवी, गुजराती और राजस्थानी भाषाओं में की। पद्यबद्ध रास आदि बनाये और गद्य में बालावबोध आदि टीकाएँ कीं । संस्कृत - प्राकृत में भी कई ग्रन्थ व स्तोत्र बनाये । प्राकृत - संस्कृत आदि भाषाओं का और व्याकरण - शब्दशास्त्र व सिद्धान्त आदि अनेक विषयों का उनका ज्ञान अधिक गंभीर था । तभी तो वे 'अभिधान - राजेन्द्र' जैसे महान् ग्रन्थ का निर्माण कर पाये, जो उन्हें अमर बनाने के लिए पर्याप्त है । " - अगरचन्द नाहटा “यदि कोई मुझसे पूछे कि जैन साहित्य के क्षेत्र में बीसवीं शताब्दी की असाधारण घटना कौन-सी है ? तो मेरा उत्तर 'अभिधान-राजेन्द्र' ही होगा । ऐसी महा परिश्रमसाध्य एवं महा अर्थसाध्य यह रचना है । श्रीमद् की यह महान् कृति संप्रति आन्तर प्रान्तीय ही नहीं आन्तर राष्ट्रीय ग्रन्थागारों को सुशोभित किये हुए है । एक ही विषय अधिकाधिक आगमिक किंवा शास्त्रीय प्रामाणिक विवरणों को अनेक स्वरूप में सरलता एवं शीघ्रता से उपलब्ध करना चाहें तो 'अभिधान-राजेन्द्र' द्वारा तत्काल प्राप्त किये जा सकते हैं । - मुनि यशोविजय 'अभिधान-राजेन्द्र' कोश की रचना कर श्रीमद् ने न केवल जैन समाज का ही महान् उपकार किया बल्कि विश्वभर को उनकी यह साहित्यिक अनुपम देन है । जैन - जैनेतर सभी विद्वन्मण्डल इस वृहद कोश- संपुट के सातों भागों से निरन्तर उपकृत है और होता रहेगा । इस ग्रन्थ-संपुट के अध्ययन से संपूर्ण जैन आगमों का सम्यग्ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है; अतः प्रचलित सभी जैन कोश-ग्रन्थों में यह अग्रस्थान का अधिकारी है ।" - कवि जयन्त मुनि " यह एक सुखद संवाद है कि श्रीयुत् विजयराजेन्द्रसूरिजी ने अनेक वर्षों के परिश्रम से महान् कोश 'अभिधान - राजेन्द्र' का निर्माण किया है, जो महत्त्वपूर्ण है और अत्यन्त विशाल है । - 'आनन्द' मासिक ; १९०७ ई. श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वर - विशेषांक / ६१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520602
Book TitleTirthankar 1975 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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