________________
प्रशस्ति
"यह विश्वकोश एक संदर्भ-ग्रन्थ की तरह तथा जैन प्राकृत के अध्ययन के निमित्त अतीव मूल्यवान है ।'
__-जार्ज ए. ग्रियर्सन
'अभिधान-राजेन्द्र' के पाँच वर्षों तक सतत् स्वाध्याय के अनन्तर मैं यह कह सकता हूँ कि प्राच्यविद्या का कोई जिज्ञासु इस आश्चर्यजनक ग्रन्थ की अनदेखी नहीं कर सकता। अपने विशेष क्षेत्र में इसने कोशविद्या के रत्न पीटर्सबर्ग कोश को भी अतिक्रान्त किया है। इस कोश में प्रमाण और उद्धरणों से पुष्ट न केवल सारे शब्द ही आकलित हैं अपितु शब्दों से परे जो विचार, विश्वास, अनुश्रुतियाँ हैं उनका सर्वेक्षण भी इसमें है। मुझे जब भी कुछ विशिष्ट करना होता है, मैं 'अभिधान-राजेन्द्र' के अवलोकन से उसका सूत्रपात करता हूँ; और कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि इससे मुझे कोई उपयोगी जानकारी न मिली हो । क्या हिन्दू और बौद्ध धर्मों के क्षेत्र में इसके समानान्तर कभी कुछ हो सकेगा ?
-प्रो. सिल्वेन लेवी
“मैं स्वर्गीय राजेन्द्रसूरिजी की समस्त कृतियों की प्रशंसा करता हूँ, विशेषतः उनकी कोशक्षेत्रीय उपलब्धि ‘अभिधान-राजेन्द्र' कोश की।"
-आर. एल. टर्नर
“मेरी राय में 'अभिधान-राजेन्द्र एक विशाल ग्रन्थ है जो भारतीय उद्यम और विद्वत्ता का मस्तक ऊँचा करता है। ग्रन्थ की प्रमुख विशेषता है उसकी सुसमृद्ध संदर्भ-सामग्री, जिससे संसार अब तक सर्वथा अनभिज्ञ था ।" ।
-प्रो. सिद्धेश्वर वर्मा
"श्री राजेन्द्रसूरिजी का जीवन सत्यान्वेषण तथा तपश्चर्या का एक महान् उदाहरण है।"
-डॉ. सर्वपल्लि राधाकृष्णन
“मैं पुरजोर कह सकता हूँ कि जैन शोध के क्षेत्र में कोई भी अनुसन्धानकर्ता सूरिजी के अतीव मूल्यवान कोण 'अभिधान-राजेन्द्र' की अनदेखी नहीं कर सकता। विगत दशकों के शोध और संपादन के कार्य को मैं धन्यवाद दंगा; किन्तु जैन शीर्षकों को लेकर कहीं कोई इतना बड़ा कोश है इसकी जानकारी मुझे नहीं है। मैंने जब भी 'अभिधान-राजेन्द्र' का अवलोकन किया है, आत्मतुष्ट हुआ हूँ। वास्तव में यह कोश उस महान् और प्रिय विद्वान् की स्मृति की रक्षा करने वाला स्मारक है।"
-वाल्थर शुब्रिग
श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वर-विशेषांक/५९
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org