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________________ १९०२ जालोर में वर्षावास; मरुघरीय कुणीपट्टी में विहार, श्री कोरटातीर्थ के मन्दिरों का उद्धार, श्री संघकारित महोत्सवपूर्वक २०१ जिन - प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा, आहोर में श्री शान्तिनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा और सुविख्यात “श्री राजेन्द्र जैनागम बृहद् ज्ञान भण्डार” की स्थापना; केसरियाजी, तारंगाजी, भोयणी, सिद्धाचल आदि तीर्थों की यात्रा; खम्भात और भड़ौंच होते हुए सूरत में पादार्पण | १९०३ सूरत में वर्षायोग ; विपक्षियों द्वारा प्रस्तुत प्रश्नों के सप्रमाण उत्तर; 'श्री अभिधान राजेन्द्र कोश' का समापन, तदनन्तर मालवा में पदार्पण । १९०४ कुक्षी में वर्षावास; ७ जिन - प्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा तथा उनका सौधशिखरी मन्दिरों में संस्थापन; अष्टापदावतार चैत्य के लिए ५१ जिनप्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा तथा मन्दिर में स्थापना; इसी तरह राणापुर में ११ जिन-बिम्बों की प्राण-प्रतिष्ठा और स्थापना । १९०५ खाचरोद में वर्षावास; सरसी में प्रतिष्ठा; २५० वर्षों से जाति - बहिष्कृत चीरोलावासी जैनों का जाति में पुनः प्रवेश, एक विकट समस्या का निर्मल और स्थायी समाधान ; राजगढ़ में ३ जिनप्रतिमाओं की प्राणप्रतिष्ठा तथा नवनिर्मित ज्ञानमन्दिर में स्थापना; जावरा में नवनिर्मित मन्दिर की प्रतिष्ठा । १९०६ बड़नगर में वर्षावास; मंडपाचल तीर्थ की यात्रार्थ ससंघ प्रस्थान; ज्वराक्रान्त होने से राजगढ़ में पादार्पण; रुग्णावस्था के कारण श्रीसंघ चिन्तित ; श्रीसंघ के भविष्य के लिए मार्गदर्शन हेतु विचार-विमर्श, श्री दीपविजयजी और श्रीयतीन्द्र विजयजी को “श्री अभिधान-राजेन्द्र" के संपादन, संशोधन एवं मुद्रण का आदेश और श्रीसंघ को मुद्रणार्थ वित्त व्यवस्था का संकेत ; १९ दिसम्बर १९०६ (पौष शुक्ला ३ ) को सन्ध्या में अनशन -संकल्प और २१ दिसम्बर १९०६ (पौष शुक्ला ६ वि. संवत् १९६३, शुक्रवार) की संध्या को अन्तेवासियों को अन्तिम उपदेश ; 'अर्हन् नमः, अर्हन् नमः' के शुभोच्चार और मंगल स्मरण करते-करते समाधियोग में लीन । श्रीसंघ द्वारा श्रीपूज्य के पार्थिव शरीर का पवित्र तीर्थभूमि श्रीमोहनखेड़ा में २२ दिसम्बर ( पौष शुक्ला ७ ) को विशाल जनमेदिनी के मध्य अन्त्येष्टि संपन्न । (टीप : १. ग्रन्थों के रचना-काल विशेषांक में पृष्ठ १४७ से पृष्ठ १५३ तक दिये जाने के कारण यहां सम्मिलित नहीं किये गये हैं; २. उक्त जीवन-वृत्त 'श्रीमद्राजेन्द्रसूरिस्मारक-ग्रन्थ' में प्रकाशित 'गुरुदेव के जीवन का विहंगावलोकन' ( साध्वीश्री महिमाश्री) के लेख तथा ‘जीवन - प्रभा' (श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वर की कृति ) पर आधारित है | ) Jain Education International श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वर - विशेषांक / ३९ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520602
Book TitleTirthankar 1975 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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