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१८८५ अहमदाबाद में वर्षायोग ; श्री विजयानन्दसूरि से त्रिस्तुतिक सिद्धान्त पर चर्चा;
सौराष्ट्र में विहार ; श्री गिरनार तथा शत्रुजय तीर्थों की यात्रा। १८८६ धोराजी में वर्षावास ; सौराष्ट्र से उत्तर गुजरात की ओर पादार्पण ; थराद
अंचल में परिभ्रमण । १८८७ धानेरा में वर्षावास ; श्री भीलडीया पार्श्वनाथ की यात्रा ; शेष समय थराद क्षेत्र
में विहार । १८८८ थराद में वर्षावास । १८८९ वीरमगाम में वर्षावास ; मारवाड़ में पादार्पण ; २५० जिन-प्रतिमाओं की प्राण
प्रतिष्ठा, श्रीआदिनाथ एवं श्रीअजितनाथ के मन्दिरों की प्रतिष्ठा । १८९० सियाणा में वर्षावास ; “श्री अभिधान-राजेन्द्र कोश" की रचना का आरंभ । १८९१ गुड़ा में वर्षावास । १८९२ आहोर में वर्षावास ; तदनन्तर मालवे की ओर पादार्पण । १८९३ निम्बाहेड़ा में वर्षावास ; श्री आदिनाथ आदि जिन-प्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा; ___ मालवे के पर्वतीय ग्राम-नगरों में विहार । १८९४ राजगढ़ में वर्षावास ; रिंगनोद में जिन-प्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा और
मन्दिर में स्थापना । १८९५ राजगढ़ में वर्षावास ; तदनन्तर मालवा में परिभ्रमण ; झाबुआ में २५१ जिन
प्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा । १८९६ जावरा में वर्षावास ; बड़ी कड़ोद में २१ जिन-प्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा और
मन्दिर में उनकी सुविध स्थापना ; अट्ठाई महोत्सव का अपूर्व आयोजन । १८९७ रतलाम में वर्षावास ; तदुपरान्त मरुधर (मारवाड़) में पादार्पण । १८९८ आहोर में वर्षावास ; श्री आहोर श्रीसंघ की ओर से श्रीगौड़ी पार्श्वनाथजी के
बावन जिनालयों की प्रतिष्ठा; ९५१ जिन-प्रतिमाओं की अंजनशलाकाएं निज कर से संपन्न ; मारवाड़ में सर्वप्रथम इतना विशाल समारोह, जिसमें यातायात की
असुविधाओं के होते हुए भी ५० हजार श्रावक-श्राविकाएँ सम्मिलित । १८९९ शिवगंज में वर्षावास ; गच्छ की मर्यादा को सुरक्षित रखने के निमित्त चतुर्विध
संघ-साधु-साध्वी. श्रावक-श्राविका की आचार-संहिता की रचना ; संहिता में ३५
समाचारी याने कलमें हैं, जिनका वर्तमान समाज पालन करता है । १९०० सियाणा में वर्षावास ; कुमारपाल नृपति द्वारा निर्मित श्रीसुविधनाथ चैत्य का
जीर्णोद्धार ; पाठशाला की स्थापना, सिरोही राज्य के झोटे मगरे में विहार । १९०१ आहोर में वर्षावास ; सियाणा में २०१ जिन-प्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा और
सुविधिनाथ चैत्य की प्रतिष्ठा ।
तीर्थंकर : जून १९७५/३८
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