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छड़ी, चामर, पालखी, शास्त्र, ग्रन्थ इत्यादि समस्त परिग्रह का श्रीसुपार्श्वनाथ के मन्दिर में अपने सुयोग्य शिष्य मुनिश्री प्रमोदरुचिजी और धनविजयजी के साथ समारोहपूर्वक परित्याग ; अर्थात् “संपूर्ण क्रियोद्धार" --संसारवर्द्धक समस्त उपाधियों का त्याग और सदाचारी, पंचमहाव्रतधारी सर्वोत्कृष्ट पद का स्वीकार ; शैथिल्य-चिह्न तथा परिग्रह-त्यागपूर्वक सच्चे साधुत्व का अधिग्रहण ; 'क्रियोद्धार" के अनन्तर खाचरोद में प्रथम वर्षायोग; त्रिस्तुतिक (तीनथुई) संप्रदाय का पुनरुद्धार ; श्रावक-श्राविकाओं को धार्मिक शिक्षण प्राप्त हो तन्निमित्त प्रयत्न,
मन्दिरों का जीर्णोद्धार तथा अन्य सत्कार्य । १८७० रतलाम में वर्षावास ; शेष काल में मालवा के पर्वतीय ग्राम-नगरों में विहार । १८७१ कुक्षी में वर्षावास, प्रवचनों में ४५ आगमों का सार्थ वाचन, तदनन्तर दिगम्बर
सिद्धक्षेत्र मांगीतुंगी के पर्वत-शिखर पर आत्मोत्थान के निमित्त छह महीनों की
दुर्द्धर तपश्चर्या । १८७२ राजगढ़ में वर्षावास ; शेषकाल में मालवा-अंचल में विहार । १८७३ रतलाम में वर्षावास ; त्रिस्तुतिक सिद्धान्त विषय पर शास्त्रार्थ एवं विजय ;
अनेक स्थानों पर विपक्षियों द्वारा उपसर्ग, किन्तु असीम सहिष्णुता और धैर्य के .
साथ भगवान् महावीर के संदेश के प्रचार-प्रसार में समुद्यत । १८७४ जावरा में वर्षावास ; विपक्षियों को उत्तम शिक्षा, तदनन्तर मारवाड़ की ओर
प्रस्थान । १८७५ आहोर में वर्षावास । १८७६ आहोर में पुनः वर्षावास ; आहोर के श्रीसंघ के मनोमालिन्य का निरसन ;
वरकाना में दीक्षाएँ। १८७७ जालोर में वर्षावास, मारवाड़ में वीर-सिद्धान्त का प्रचार ; जालोर दुर्गस्थित
जिनालयों की, जिनका शस्त्रागारों की भाँति उपयोग हो रहा था, सरकारी अधिकार से मुक्ति और उद्धार, विशाल समारोहपूर्वक प्रतिष्ठा; जावरा में पादा
र्पण, ३१ जिन-बिम्बों की प्राण-प्रतिष्ठा और मन्दिरों में स्थापना । १८७८ राजगढ़ में वर्षायोग । १८७९ रतलाम में वर्षायोग ; कुक्षी में २१ जिन-बिम्बों की प्रतिष्ठा । १८८० भीनमाल में वर्षायोग, आहोर में प्राचीन चमत्कारी श्रीगौड़ीनाथ पार्श्वनाथ
की प्रतिष्ठा । १८८१ शिवगंज में वर्षायोग तदुपरान्त मालवा में पादार्पण । १८८२ अलीराजपुर में वर्षायोग, तदनन्तर राजगढ़ में पादार्पण, श्री मोहनखेड़ा मन्दिर की
रचना का सूत्रपात । १८८३ कुक्षी में वर्षायोग । १८८४ राजगढ़ में वर्षायोग, श्री मोहनखेड़ा के मन्दिर की प्रतिष्ठा और ४१ जिन-प्रति
माओं की प्राण-प्रतिष्ठा; धामणदा तथा दसाई में प्रतिष्ठाएँ; गुजरात में विहार ।
श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वर-विशेषांक/३७
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