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१८५० मन्दसौर में वर्षावास । १८५१ उदयपुर में वर्षावास । १८५२ नागोर में वर्षावास ; विनयादि गुण तथा मेधा को विचक्षणता देखकर देवेन्द्र
सूरि की प्रेरणा से उदयपुर में श्री हेमविजयजी से बड़ी दीक्षा ; पंन्यास-पद की प्राप्ति । १८५३ जैसलमेर में वर्षावास । १८५४ पाली में वर्षावास । १८५५ जोधपुर में वर्षावास । १८५६ किशनगढ़ में वर्षावास । १८५७ चित्रकूट में वर्षावास । १८५८ सोजत में वर्षावास । १८५९ शंभूगढ़ में वर्षावास । १८६० बीकानेर में वर्षावास । १८६१ सादड़ी में वर्षावास । १८६२ भीलवाड़ा में वर्षावास । १८५७-६२ श्री धरणेन्द्रसूरि और उनके यति-मण्डल को विद्याभ्यास । १८६३ रतलाम में वर्षावास ; आहोर में श्री विजयप्रमोदसूरि के सान्निध्य में ; वर्षावास
के उपरान्त आहोर में पुनरागमन । १८६४ अजमेर में वर्षायोग ; श्रीधरणेन्द्रसूरि द्वारा 'दफ्तरी' के रूप में नियक्ति । १८६५-६६ जालोर में वर्षायोग ; दफ्तरी-पद का परित्याग ; यतिसंस्था में क्रान्ति की
पूर्वपीठिका-रचना, मरुधर (मारवाड़) में परिभ्रमण । १८६७-६९ घाणेराव में वर्षायोग ; श्रीधरणेन्द्रसूरिजी से इत्र-विषयक विवाद : निज
गुरू श्री प्रमोदविजयजी से आहोर पहुँचकर विचार-विमर्श और सारी स्थिति का पूरी तरह स्पष्टीकरण ; आहोर में ही श्री प्रमोदसूरिजी द्वारा श्रीसंघ की सहमति से परम्परागत सूरिमन्त्र देते हुए एक धार्मिक समारोह में श्रीपूज्य' पद्वीदान ; तदुपरान्त श्री रत्नविजयजी से श्री विजयराजेन्द्रसूरि अभिधान का आग्रहण ; मरुधर में विहार ; जावरा में वर्षावास ; वर्षावास की अवधि में वहाँ के नवाब और दीवान से सांस्कृतिक प्रश्नोत्तर ; इसी बीच श्रीधरणेन्द्रसूरिजी के दौत्य के रूप में श्री सिद्धकुशल और मोतीविजयजी का जावरा-आगमन ; श्रीमद् से प्रत्यक्ष चर्चा एवं जावरा के श्रीसंघ से प्रार्थना ; श्रीमद् राजेन्द्र सूरिजी द्वारा गच्छ-सुधार के निमित्त “नवकलमों” का पत्र ; इस कलमनामे में यतियों के निर्मलीकरण की एक नौसूत्री सुधार-योजना का प्रस्ताव तथा यतिसंस्था से अन्धविश्वासों, जर्जर और विकृत परम्पराओं ; रूढ़ियों और शिथिलताओं के निरसन की व्यवस्था; दोनों यतियों के शुभ प्रयास से श्रीधरणेन्द्रसूरिजी द्वारा “कलमनामे' की स्वीकृति और उस पर संपूर्ण "सही", यतिक्रान्ति के इस घोषणापत्र का सभी प्रमुख यतियों द्वारा एकस्वर से स्वीकार ; जावरा में श्रीसंघ की प्रार्थना पर श्रीपूज्य-संबंधी
तीर्थंकर : जून १९७५/३६
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