SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जय राजेन्द्र तुम्हारी जय ! राजेन्द्र तुम्हारी, यावच्चन्द्र दिवाकर जग में ! तुम संस्कृति के संवाहक, तप-धर्मवृत्ति के निर्वाहक ! तुम जिनवाणी के परिचायक ! विधि मार्ग प्रबलता-संचायक ! नत मस्तक हैं हम, तुम अविकल हो युग में जय ! राजेन्द्र तुम्हारी, यावच्चन्द्रदिवाकर जग में । जिन-शासन-रवि तेजोमय रश्मि । प्रभापूर्ण शुचि देह निभा। भुवि बोधक अविरल तत्त्वप्रति । संग्राहक सद्गण विमल विभा। सत्तत्त्व प्रकाशक महामना, अविचल निज मग में। जय ! राजेन्द्र तुम्हारी यावच्चन्द्रदिवाकर जग में ।। तुम त्याग-मार्ग के अनुगामी । हो श्रेय प्रेय युत निष्कामी। अभिवन्दनीय तुम जीवन-गाथा। युग-युग-प्रेरक अभिरामी । निष्प्रकंप साधना ज्यों, अडिग रहा नग में । जय ! राजेन्द्र तुम्हारी, यावच्चन्द्रदिवाकर जग में ।। ज्ञाता द्रव्य-गुण-पर्याय-भेद के । तुम आत्मतत्त्व-विज्ञान-निधि । तपोमूर्ति अप्रमत्त अहोनिशि । योगीश्वर स्व-गुण-गण-ऋद्धि । प्रमोद-भाव प्रभासन शान्तभाव रहा प्रतिक्षण में । जय राजेन्द्र ! तुम्हारी, यावच्चन्द्रदिवाकर जग में ।। अखिल विश्व के वंद्य चरण तुम उत्कट अगम-निगमचारी । उन्नायक सुधि जिन-शासन के । पालक विमल पंचाचारी। सन्मार्ग विधायक अडिग योद्धा, निडर वृत्ति उर में। जय ! राजेन्द्र तुम्हारी यावच्चन्द्रदिवाकर जग में । - मुनि जयन्तविजय 'मधुकर' तीर्थंकर : जून १९७५/२६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520602
Book TitleTirthankar 1975 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy