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और संगीत तथा आशुकवित्व-शक्ति से सम्पन्न थे, द्वारा तत्काल रचित अवसरोचित्त काव्य पढ़ा
मेघ घटा सुछटा असमान ज्यु, संजम साज मुनिमग धारी । भूरि जना रिछपाल कृपाल ज्यु, अमृत वेण सुताप विडारी । काल-कराल कुलिंग विखण्डन, मण्डन शासन जैन सुधारी । पंचम काल चले शुभ चालसं,
सूरिविजय राजेन्द्र जितारी ॥१॥ उदयो दिनकर तेज प्रताप थी, सोहम नभ निरधार ।
सूरि विजय राजेन्द्र दिपाव्यो, जिन शासन जयकार ॥२॥ यतिगण और उपासकगण ने समयोचित वक्ता प्रमोदरुचिजी का साथ दिया। सभा में उल्लास और आनन्द तथा जयजयकार छा गया।
पंन्यास मोतीविजयजी ने अब श्रीपूज्य राजन्द्रसरिजी से यतिमण्डल में पुनः पधारने की सानुनय प्रार्थना की जब उपस्थित यतियों ने भी इसीलिए अनुनय की तब प्रसन्नमना श्रीपूज्य ने अपने अभिग्रह की बात कहकर उत्तर दिया वि. सं. १९२५ के चैत्र शुक्ला १३ को मेरे अभिग्रह की पाँच वर्षों की अवधि समापन हो रही है अत: मैं अब कृतकार्य हुआ । मुझे तो आत्मसुख के लिए क्रियोद्धार करना है। यह बात सुन यतिगण में आशा-निराशा प्रसन्नता की मिश्र प्रतिक्रियाएँ हुईं। पं. मोतीविजय दुःखित थे; पर वे कर ही क्या सकते थे? अभिग्रह की बात को प्रथम दिन से ही व जानते थे, अत: निराश भी थे तो कलमनामा मंजूर करवाने की सफलता के लिए यशःभागी भी।
__ आये हुए यतियों ने जावरा में कुछ दिन मुकाम किया और क्रियोद्धार के दिन पुनः आने का विचार करके रवाना हए।
कलमनामे का स्वीकार होने पर वि. सं. १९२३ के भाद्रपद शुक्ला २ के दिन इत्र के विवाद के अवसर पर श्री राजेन्द्र सूरि (तब श्रीरत्नविजयजी) जी ने कहा था कि--
___ "श्रीमान् ! देखते जाइये, हवाएँ किधर बहती है। मेरा तो विचार-निर्णय शुद्ध साध्वाचार प्रचार के लिए क्रियोद्धार का है, पर इस उन्माद का उपचार भी अत्यावश्यक है । रोग यदि बढ़ गया हो तो अंग-भंग का मौका भी आता है। अतः पहले यह शल्य उपचार माँगता है, सो करना ही पड़ेगा। श्रीमान् ! औषध के कडुवे पूंट पीने को तैयार रहें। मैं औषध अतिशीघ्र भेजूंगा।"
उन्होंने ये वचन ५१५ दिन अर्थात् १७ महीने और पाँच दिन में सार्थक और सफल कर दिय। जो तमन्ना थी, वह समापन हुई । जावरा का चातुर्मास और जावरा पधारना तथा जावरा के श्रीसंघ के अग्रसरों का जूने श्रीपूज्य को दी टूक उत्तर देना तथा संघर्ष में छली यतियों के सन्ताप सहना आदि सब तब सार्थक हो गये जब यतिक्रान्ति का यह घोषणापत्र (कलमनामा) अस्तित्व में आ गया। वास्तव में गत शताब्दी की यह घटना अविस्मरणीय है । मात्र एक व्यक्ति अपने बल-पराक्रम से युगों पुराने और गहरे जमे कटरे को एक झपाटे में साफ कर दे आश्चर्यजनक संवाद है यह।
श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वर-विशेषांक/२५
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