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रखावसी तो ऊपर लख्या मुजब श्रीपूज तथा साधुलोग अपनी अपनी मुरजादा मुजब बराबर चालसी कोईतरेसुं धर्म की मुरजादा में खामी पड़सी नहीं । श्रीसंघने ऊपर लख्या मुजब बंदोबस्त कराये भेज्या हे सो देख लेरावसी संवत १९२४ मिति माहसुदि ७
पं. मोतीविजेना दसकत, पं. देवसागरना दसकत, पं. केसरसागर ना दसकत, पं. नवलविजेना दसकत, पं. वीरविजेना दसकत, पं. खिमाविजेना दसकत, पं. लब्धिविजेना दसकत, पं. ज्ञानविजेना दसकत, पं. सुखविजेना दसकत ।
इत्र का विवाद एक सामान्य विवाद था, परन्तु इस विवाद ने दफ्तरीजी की नींद उड़ा दी । विचार - शून्यता और आचार - हीनता ने त्यागी संघ और उसके नेता पर ऐसा जादू डाला था कि वे पतन के रसातल में जा पहुँचे थे। धर्माधिकारी की स्वच्छन्दता पर यदि नियन्त्रण नहीं लगाया गया तो पतन ही पतन है। इत्र की सुगन्ध तो कुछ घण्टों बाद समाप्त हो गयी, किन्तु वह दफ्तरी के अन्तस् तल में जो वेदना, संताप और शल्प पीड़ा छोड़ गयी थी उसी का समाधान उक्त " करारनामे " की स्वीकृति है ।
श्रीविजयराजेन्द्रसूरि ने उस समय यह जो नवकलमों का कलमनामा यतियों और उनके श्रीपूज्य से मंजूर करवाया, इसमें मात्र उनश्री का निर्दभ विचार प्रभाव और शासन-भक्ति ही दृष्टिगोचर होती है । कलमनामे में उन्होंने अपने लिये किसी प्रकार का सम्मान और प्रतिष्ठा का एक शब्द भी प्रयुक्त नहीं करवाया। जैन मुनि के आचार और प्रभाव तथा विचार का पुनरुद्धार ही उनके हृत्तल में रात-दिन निरन्तर रममाण था । कलमनामे का गहराई से अध्ययन करने पर यह बात स्पष्ट होती है । श्रीधरणेन्द्रसूरि और यतियों से उन्हें किसी प्रकार का विद्वेष नहीं था ।
कलमनामे का एक-एक शब्द और एक-एक नियम वस्तुतः उस युग में यतिसमुदाय किस तरह आचार-विचार - मुक्त हो गया था, उसका एक जीवन्त शब्द-चित्र प्रस्तुत करता है । इन नियमों का गहरा अध्ययन करने से यह तथ्य भी उभर कर सामने आ जाता है कि इस कलमनामे को मंजूर करवा कर अमली जामा पहिनाने में अनेक बाधाएँ आयी होंगी तथा गंभीर संघर्ष हुआ होगा । यह ध्वनि आठवी कलम से निकलती है । इस कलम में कहे गये शब्द अन्य कलमों जैसे स्पष्ट होते हुए भी अन्तस् में गंभीर प्रतिबद्धता लिये हुए हैं ।
सुधार करने के लिए उद्यत उद्धारकों को कई बार बड़ी विचित्र परिस्थितियों और गंभीरतम क्षणों में रहना पड़ता है । उन्हें विरोध, प्रहार, भ्रान्तियों और संकष्टों का सामना करना पड़ता है । इस कलम में द्रव्य-संग्रह - मोह का निरसन किया गया है; परन्तु ऐसा लगना है कि समाधान और सुधारणा का कार्य मन्द हुआ जाता होगा; अतः मध्यस्थ समाधानकारों ने " तकरार" और " दबाय" इन दो शब्दों की बढ़ोतरी करके उपद्रवियों के कोलाहल को नाकाम किया । दीखने में मद्धम किन्तु क्रान्तिनिष्ठ इन नियमों का यतिराजों और यतियों द्वारा परिचालन उस
धीमद् राजेन्द्रसूरीश्वर - विशेषांक / २३
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