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आदेश सदामत भेजता आया जणी मुजब भेज देसां । अणां की लारां का सधुवासु हमें कोयतरे दुजात भाव राखां नहीं और नव कलमा की विगत नीचे मंडी हे जिस माफक हमाने कबुल है। जणी की विगत
(१) पेली--प्रतिक्रमण दोय टंक को करनो श्रावक साधु समेत करना करावणा, पच्क्खाण वखाण सदा थापनाजी की पडिलेहण करणा, उपकरण १४ सिवाय गेणा तथा मादलिया जंतर पास राखणा नहीं, श्रीदेहरेजी नित जाणा सो सवारी में बेठणा नहीं पेदल जाणां।
(२) दूजी--घोड़ा तथा गाड़ी ऊपर नहीं बेठणा, सवारी खरच नहीं राखणा ।
(३) तीजी--आयुध नहीं राखणा तथा गृहस्थी के पास का आयुध गेणा रूपाला देखे तो उनके हाथ नहीं लगाणा, तमंचा शस्त्र नाम नहीं रखणा ।
(४) चोथी-लुगाइयाँसु एकांत बेठ बात नहीं करणा, वेश्या तथा नपुंसक वांके पास नहीं बेठणा। उणांने नहीं राखणां।
(५) पांचमी--जो साधु तमाखु तथा गांजा भांग पीवे, रात्रि भोजन करे, कांदा लसण खावे, लंपटी अपचक्खाणी होवे एसा गुण का साधु होय तो पास राखणा नहीं ।
(६) छट्ठी--सचित्त लीलोती काचा पाणी वनस्पतिकुं विणासणा नहीं, काटणा नहीं, दांतण करना नहीं, तेल फुलेल मालस करावणा नहीं, तालाब, कुवा, बावड़ी में हाथ धोवणा नहीं ।
(७) सातमी-सिपाई खरच में आदमी नोकर जादा नहीं राखणा जीवहिंसा करे एसा नोकर राखणा नहीं।
(८) आठमी--गृहस्थी से तकरार करके खमासण प्रमुख के बदले दबायने रुपिया लेणा नहीं।
(९) नवमी--ओर किसी को सद्दहणा देणा श्रावक श्रावकणियाने उपदेश शुद्ध परुपणा देणी। एसी परूपणा देणी नहीं जणी में उलटो उणां को समकित बिगड़े है एसो परूपणो नहीं । ओर रात को बाहर जावे नहीं ओर चोपड़ सतरंज गंजफो वगेरा खेल रामत कहीं खेले नहीं, केश लांबा वधावे नहीं, पगरखी पेरे नहीं, ओर शास्त्र की गाथा ५०० रोज सज्झाय करणा।
इणी मुजब हमें पोते पण बराबर पालागां ने ओर मुंड अगाड़ी का साधुवांने पण मजब चलावांगा ने ओर श्रीपूज आचार्य नाम धरावेगा सो बराबर पालेहीगा, कदाच कोई ऊपर लख्या मुजब नहीं पाले ने किरिया नहीं सांचवे जणीने श्रीसंघ समजायने कह्यो चाहिजे, श्रीसंघरा केणसुं नहीं समझे ने मरजादा मुजब नहीं चाले जणां श्रीपूज्यने आचार्य जाणणो नहीं ने मानणो नहीं । श्रीसंघ की तरफसुं अतरो अंकुश वण्यो
तीर्थंकर : जून १९७५/२२
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