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________________ का उत्पात सीमातीत हो गया था। चार मुंहपत्ती की आड़ में वासना, कामना तथा लालसा का पोषण हो रहा था। स्वाग के मार्ग चला मुनि आचार-शैथिल्य के दुश्चक्र में फँस गया था। कलमनामे का सुधार उन्हें नियंत्रण में करने के लिए अस्तित्व में आया । वास्तव में यह सत्य है कि पू. पा. श्रीमद् राजेन्द्रसूरि उस समय के प्रभविष्णु, क्रान्तनिष्ठ और दृढ़ संकल्पी व्यक्ति थे। प्रश्न के सब पहलुओं का गहरा अध्ययन और उसके हल का सटीक, सतर्क और सप्रमाण निदान आपका अनुभव था। आप यति-मण्डल में अपने तप, त्याग, ज्ञान , अनुभव और कार्य-कौशल के लिए प्रख्यात थे। यही कारण था कि यह 'कलमनामा' यतियों ने स्वीकार किया। यह कलमनामा उस समय की मालवी-मारवाड़ी-मिश्र भाषा में एक दस्तावेज के रूप में लिखा गया है। उस जमाने की प्रचलित परिपाटी के अनुसार हस्ताक्षर के स्थान पर 'सही' शब्द अंकित होते थे। जिन्हें पूरे हस्ताक्षर माना जाता था। कलमनामे के प्रारम्भ में ऊपर मध्य से 'सही' यह अंकित है जो पूज्य धरणेन्द्रसूरि के हाथों का है। बाद में लेख प्रारंभ होता है। लेख के अन्त में यति वर्ग में अपना प्रभाव रखने वाले नौ यतियों के हस्ताक्षर हैं। जिनके नामों के आगे "पं.” लिखा है, जिसका अर्थ 'पंन्यास' और 'पंडित' दोनों संभव है। कलमनामा मलतः इस प्रकार है : सही स्वस्तिश्री पार्वजिनं प्रणम्य श्री श्री कालंद्री नयरतो भ. श्री श्री विजय धरणेन्द्र सूरि यस्सपरिकरा श्री जावरा नयरे सुश्रावक पुण्यप्रभावक श्री देवगुरुभक्तिकारक सर्वावसर सावधान बहुबुद्धि निधान संघनायक संघमुख्य समस्त संघ श्री पंच सरावकां जोग्य धर्मलाभ पूर्वकं लिखंति यथाकार्य, चारित्रधर्मकार्य सर्वनिरविघ्नपणे प्रवर्ते छे । श्री देवप्रशादे तथा संघना विशेष धर्मोद्यम करवा पूर्वक सुख मोकलवा सर्वविधि व्यवहार मर्यादा जास प्रवीन गुणवंत भगवंत सुर्मिदीपता विवेकी गहस्थ संघ हमारे घणी बात छो जे दिवस्ये संघने देखस्युं वंदावस्युं ते दिवसे धणो आनंद पामस्यं तथा तुमारी भक्ति ग्रहस्थें करी श्री तपगच्छनी विशेष उन्नति दीसे छे ते जाण छ । उपरंच तुमारे उठे श्रीपूज्यजी विजयराजेन्द्रसूरिजी नाम करके तुमारे उठे चौमासो रह या छे सो अणां के ने हमारे नव कलमा बावत खिंची थी सो आपस में मिसल बेठी नहीं, जणी ऊपर रुसाइने नवी गदी खड़ी करने गया छ । इणांको नाम रतनविजयजी हे, हमारा हाथ नीचे दफ्तर को काम करता था। जणी की समजास बदले हमों वजीर मोतीविजे मुनिसिद्धिकुशलने आप पासे भेज्या सो आप नव कलमा को बंदोबस्त वजीरमोतीविजय पास हमारे दसकतासुं मंगावणो ठेरायो ने दो तरफी सफाई समजास कराई देणी सो बात आछो कियो। अबे श्रीविजयराजेन्द्रसूरिजी के साथ साधु छ जणाने वजीर मोतीविजेजी के साथ अठे भेजाई देसी सो श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वर-विशेषांक/२१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520602
Book TitleTirthankar 1975 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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