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________________ में दिखायी दिया । पं. मोतीविजयजी और पं. देवसागर आदि ने तो साफ-साफ सुना दिया कि यदि यतिवर्ग में व्याप्त स्वच्छन्दता और उद्दण्डता का दमन तत्काल नहीं किया गया तो हम भी नये श्रीपूज्य के हमकदम होंगे। आत्मसुख के लिए यह बाना है महाराज, न कि इन्द्रियों की चाकरी के लिए । श्रीपूज्य अब विकट परिस्थिति की झंझा में भटक गये थे, मार्ग अवरुद्ध दीख रहा था। अपने उतावले स्वभाव पर खीझ उठे वे; पर अब क्या होना था ? नदी का पानी दूर चला गया था। तीर और शब्द निकलने के बाद किसी के हाथ' नहीं रहते। वार्ताओं के दौर चले बचने-बचाने के लिए तर्कों के फांफें निरर्थक दीख पड़े। तब नामी और अनुभवी यतियों पर सारा मसला छोड़ा गया। उन्होंने अनुभवी और विचारवान् पं. मोतीविजयजी एवं मुनि सिद्धिकुशलजी को श्रीपूज्य राजेन्द्रसूरिजी के पास भेजा। दोनों जावरा आये। जावरा में तब तक कुछ हीनप्रकृति यतियों ने मंत्रों का हौवा खड़ा करके जनता में संत्रास और आतंक मचाने का निष्फल प्रयास किया था, किन्तु परिणाम में कुछ हाथ लगा न था। संघ में रोष व्याप्त था। ऐसे में उक्त दोनों यति जावरा गये । सारा वातावरण और प्रपंच जानकर दुःखी हो गये दोनों यति । बड़ी नम्रता और धीरता से उन्होंने अपने मिशन का लक्ष्य श्रीसंघ जावरा के सामने प्रस्तुत किया । अन्ततः दोनों यति जावरा के आगेवानों के साथ रतलाम पहुँचे । श्रीपूज्य राजेन्द्रसूरि वहाँ बिराजते थे। वार्ता और परामर्श के दौर चले; पर श्रीपूज्य का उत्तर स्पष्ट और असंदिग्ध कि –'मुझे पद, यश या कीति की भूख नहीं; मैं तो क्रियोद्धार का मनोरथ कर रहा हूँ। पर यतिपूज्य यतियों के आचारविचार में से अयुक्त और हीन प्रवृत्तियों का निष्कासन करें तो मुझे मंजूर है अन्यथा क्या फल और परिणाम आने वाले हैं, वे आप सब देख ही रहे हैं।' यतियों ने जब सब रास्ते बंद देखे तब सुधार का फार्मूला मानने में ही हित दीखा उन्हें! अतः श्रीपूज्य से सुधार-पत्र लेकर वे यतिपूज्य श्रीधरणेन्द्र सूरि के पास गये। सुधारों का फार्मूला-'कलमनामा' देख कर कुछ बौखलाहट मची पर जब सारी स्थिति का स्पष्ट विश्लेषण हुआ तो अन्य रास्ते सब निरर्थक ही दीखे । जब दोनों यतियों ने समझाया तब सब माने । आखिर यतिपूज्य श्रीधरणेन्द्रसूरि ने 'कलमनामे' पर वि. सं. १९२५ की माघ शुक्ला ७ को हस्ताक्षर कर दिये । यतिपूज्य ने श्री राजेन्द्रसूरिजी की पदवी को भी मान्य कर लिया। उस कलमनामे पर नौ यतियों ने हस्ताक्षर किये। वह कलमनामा संघ में "नवकलमों" के नाम से विख्यात है। जावरा, रतलाम, आहोर आदि के ज्ञान भण्डारों में इस कलमनामे की प्रतियाँ सुरक्षित है। दोनों ओर के आग्रहों से ऊपर उठकर जब हम कलमनामे का अध्ययन करते हैं तब निष्कर्ष यही आता है कि उस समय जैन श्वेताम्बर संघ में यतियों तीर्थंकर : जून १९७५/२० For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.520602
Book TitleTirthankar 1975 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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