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यतिक्रान्ति का घोषणापत्र : कलमनामा
आखिर यतिपूज्य श्री धरणेन्द्रसूरि ने 'कलमनामे' पर वि. सं. १९२५ (ई. सन् १८६८) की माघ शुक्ला ७ को 'दसकत' कर दिये। यतिपूज्य ने श्री राजेन्द्रसूरिजी की पदवी को भी मान्य कर लिया। उस कलमनामे पर नौ यतियों ने हस्ताक्षर किये।
- मुनि देवेन्द्रविजय
भगवान महावीर के २३८९ वें जन्मकल्याणक की रात स्वाध्याय-अमृत के आनन्द-समुद्र से प्राप्त सारतत्व के फलस्वरूप मुनिप्रवर श्रीरत्नविजयजी ने पाँच वर्षों की अवधि-मर्यादा रखकर धरणविहार चैत्य राणकपुर में क्रियोद्धार का अभिग्रह किया।
___ अभिग्रह-धारण के समय कोई ऐसी शुभ घड़ी थी कि जिसका लाभ जैन श्वेताम्बर संघ को मिला। इत्र का अकिंचन प्रसंग निमित्त बना । मुनिश्री रत्नविजय सावधान हुए । उन्होंने व्यवधानों को झटक दिया। बाधाओं के टीले उन्हें हरा नहीं सके । तप, त्याग, अनुप्रेक्षा और स्वाध्याय का पाथेय ले वे संयम के राजमार्ग पर निर्द्वन्द्व चल पड़े। सं. १९२४ की वैशाख शुक्ल ५ को श्रीमद्प्रमोदसूरिजी ने विधिपूर्वक उन्हें श्रीपूज्य पद प्रदान किया। नाम श्रीमद्राजेन्द्रसूरीश्वर दिया गया ।
वाणी और विचारों में अडिग, व्यवहार में स्पष्ट और असन्दिग्ध, निर्भय, ओज, तेज और क्रान्ति का निनाद करती विचार-वीणा से भगवान महावीर के सिद्धान्तों के अमृत का वर्षण करते हुए उन्होंने गाँव-गाँव और नगर-नगर में जागृति का गगनभेदी शंखनाद किया। कष्ट, यातना, प्रपीड़न और उपसर्गों से जूझते हुए श्रीराजेन्द्रसूरीश्वर कठोर शूलों को सुकुमार फूल समझते रहे।
___ जागृति का प्रखर शंखनाद अलख जगा रहा था और श्रीपूज्य धरणेन्द्रसूरिजी को सावधान कर रहा था, वे पछतावे की आँच में निखर रहे थे। बदलती हवाओं ने उन्हें पसोपेश में डाल दिया था। उनमें जब सत्ता का उन्माद उतरने लगा तब उन्हें लगा कि समाधान का सूत्र अब उनके हाथों से छूट गया है । उन्हें अपने पैरों-तले की ज़मीन खिसकती नज़र आयी । तड़प उठे वे । आतुर हो उठे किसी हल, किसी समाधान के लिए । मालवा की ओर से आये यात्रियों ने जब उधर का हाल बताया तब यति-पूज्य अकुला उठे। उन्होंने नामी-गरामी यतियों को आमन्त्रित किया । सलाह-मशविरों के दौर आरंभ हुए । निर्णय श्रीमद्राजेन्द्रसूरिजी के पक्ष
श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वर-विशेषांक/१९
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