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________________ था। मैं बहुत प्रसन्न रहता था। अब मेरे पड़ौसी ने एक सुन्दर तिमंजिला मकान बना लिया है । इसलिए हर वक्त मुझे बेचैनी सताती रहती है । वह तिमंजिला मकान मेरी स्मृति से ओझल ही नहीं होता ।' अब आप देखें घटना कहाँ घटित हुई और परिणाम किसमें अभिव्यक्त हुआ । एक तिमंजिला मकान बन गया, घटना घटित हो गयी। जानते सब हैं, पर सबको कोई कष्ट नहीं होता । कष्ट उसी को होता है, जो ज्ञान को घटना के साथ जोड़ देता है । एक-द्वेष का भाव संचित कर लिया और उसे अपने ज्ञान से जोड़ दिया । यह है अज्ञान । हम ज्ञान किसको कहें ? ज्ञान वह होता है जहाँ केवल जानना होता है, ज्ञप्ति होती है । जहाँ जानने के सिवाय कुछ भी नहीं होता, वह होता है मात्र ज्ञान । अज्ञान क्या होता है ? अज्ञान का मतलब जानना तो है, पर उसके साथ और कुछ जुड़ जाता है। उसके साथ राग-द्वेष, मोह, मद आदि -आदि जुड़ जा हैं। जहाँ वे जुड़ते हैं, वहाँ ज्ञान अज्ञान बन जाता है । जो ज्ञानी होता है, वह समाधि में रहता है । ज्ञानी को समाधि प्राप्त होती है। ज्ञान समाधि है, अज्ञान समाधि नहीं है । वह असमाधि है । वह ज्ञान जिसके साथ राग-द्वेष, मोह आदि का सम्बन्ध है, वह ज्ञान समाधि नहीं है । समाधि वहीं है जहाँ केवल ज्ञान है, मात्र ज्ञान है, वेदना नहीं है । जहाँ ज्ञान और वेदनदोनों हैं, वह अज्ञान है । आज के लोग शिक्षा के क्षेत्र में कहते हैं कि ज्ञान का यह परिणाम आ रहा है; किन्तु ज्ञान का यह परिणाम नहीं है । यह परिणाम संवेदन के साथ आ रहा है। ज्ञान के साथ संवेदन के जुड़ जाने से वही परिणाम आयेगा, जो आज आ रहा है। इससे भिन्न परिणाम नहीं हो सकता । जहाँ ज्ञान के साथ संवेदन जुड़ जाता है, वहाँ वह ज्ञान नहीं रहता, संवेदन या अज्ञान बन जाता है । आज जो है वह संवेदन है, ज्ञान नहीं है। ज्ञान वही होगा जो खालिस ज्ञान है, केवल ज्ञान है, मिश्रण नहीं है । योगसार में लिखा है- 'यथावस्तु परिज्ञानं ज्ञानं ज्ञानिभिरुच्यते । रागद्वेषमक्रोधैः सहितं वेदनं पुनः ॥' जो वस्तु जैसी है, वैसा ज्ञान होना अर्थात् सत्य का बोध होना ज्ञान है । ज्ञान के साथ जब राग-द्वेष आदि जुड़ते हैं, तब वह संवेदन बन जाता है, ज्ञान नहीं रहता। दोनों में यही अन्तर है । संज्ञा और ज्ञान में यही फर्क है । आहार, भय, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि -आदि संज्ञाएँ हैं । ज्ञान का अर्थ है— ज्ञान और वेदना का सम्मिश्रण । जब ज्ञान वेदना बनता है तब संज्ञा बन जाती है। जो कोरा ज्ञान है, वह समाधि है । वेदन मिलते ही वह असमाधि बन जाती है । वेदान्त में एक शब्द है--दृष्टा । द्रष्टाभाव ही ज्ञान -समाधि है । श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वर - विशेषांक / १७५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520602
Book TitleTirthankar 1975 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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