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________________ ज्ञान-समाधि कुछ लोग शास्त्रों के स्वाध्याय का खण्डन करते हैं। यह खण्डन ज्ञान का नहीं होना चाहिये। खण्डन होना चाहिये संवेदन का। हम कहीं से जानें--पुस्तक को पढ़कर जानें, सुनकर जानें कहीं से भी जानें, अगर ज्ञान है तो कोई कठिनाई नहीं है। ज्ञान कहीं नहीं भटकाता। भटकाता है संवेदन। ज्ञान और संवेदन को ठीक तरह से समझ लें तो सारी समस्याएं सुलझा जाती हैं। इनको ठीक से नहीं समझते हैं तो कभी हम ज्ञान को कोसते हैं, कभी शास्त्रों को कोसते हैं, कभी पुस्तकों को कोसते हैं, गालियाँ देते हैं, उनके लिए ऊटपटांग बातें करते हैं। यह दोष उन शास्त्रों का नहीं, उन ग्रन्थों का नहीं, उन पुस्तकों का नहीं, पुस्तक लिखने वाले ज्ञानी पुरुषों का नहीं, यह हमारा ही दोष है। - मुनि नथमल मैं उस समाधि की चर्चा करूँगा जो सबसे सरल है, पर है सबसे कठिन । ज्ञान-समाधि सबसे सरल इसलिए है कि उसमें कुछ करना नहीं होता। उसमें न आसन करना होता है, न प्राणायाम और न ध्यान। कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। भक्ति और पूजा करने की भी जरूरत नहीं है। कर्म और उपासना करने की भी जरूरत नहीं है। इसमें कर्मयोग और भक्तियोग दोनों छूट जाते हैं। हठयोग भी छूट जाता है। कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। जिसमें कुछ भी करने की जरूरत नहीं, वह सबसे सरल होता है, किन्तु जिसमें कुछ भी करने की जरूरत नहीं होती, वह सबसे कठिन भी होता है। ज्ञानयोग में कुछ भी करना नहीं होता, पर यह करना बड़ा कठिन है। ज्ञानयोगी वही बन सकता है जो संन्यास की स्वस्थ भूमिका पर पहुँच जाता है। यह कठिन क्यों है-इसे स्पष्ट करना है। हम जो करते हैं, जो घटना घटित होती है, हम जो जानते हैं--इन दोनों को मिला देता है साधारण आदमी। एक घटना घटित होती है, व्यक्ति उसे अपने ज्ञान से जोड़ देता है। एक आदमी किसी गाँव में गया। पूर्व-परिचित के यहाँ ठहरा। देखा, जिस घर में ठहरा है, वह मित्र अत्यन्त उदास नजर आ रहा है। उसने पूछा--'मित्र ! जब मैं पहले आया था, तब तुम बहुत प्रसन्न थे । आज उदास क्यों, वह बोला-- 'क्या सही बताऊँ ? बात यह है, पहले इस गाँव में दुमंजला मकान एक मेरा ही तीर्थंकर : जून १९७५/१७४ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520602
Book TitleTirthankar 1975 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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