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महावीर
विदेशी समकालीन
डॉ. भगवतशरण उपाध्याय
कन्फूशस ईसा पूर्व छठी सदी, जिसमें तीर्थंकर महावीर का जन्म हुआ था (५९९-२७), संसार के इतिहास में असाधारण उथल-पुथल की सदी थी। सारे संसार में तब चिन्तन के क्षेत्र में विद्रोह हो रहा था और नये विचार प्रतिष्ठित किये जा रहे थे। नये दर्शन रचे-परिभाषित किये जा रहे थे। भारत, चीन, ईरान, इसराइल सर्वत्र नये विचारों की धूम थी।
भारत में यह युग उपनिषदों का था, जिन्होंने वेदों के बहुदेववाद से विद्रोह कर “ब्रह्म" की प्रतिष्ठा की, चिन्तन को हिंसात्मक यज्ञों से ऊपर रखा, ब्राह्मणों के प्रभत्व को तिरस्कृत कर क्षत्रियों की सत्ता दर्शन के क्षेत्र में स्थापित की। उस काल सत्य की खोज में विचारों के संघर्ष करते अनेक साधु, आचार्य और परिव्राजक अपने-अपने शिष्यसंघ लिये देश में फिरा करते और तर्क तथा प्रज्ञा से सत्य को परखते। ये प्रायः सभी विचारक दार्शनिक-कम-से-कम महावीर और बुद्ध के समकालीन-अनीश्वरवादी और अनात्मवादी थे। इनमें अग्रणी महावीर और बुद्ध थे जो क्षत्रिय और अभिजात थे और अश्वपति कैकेय, प्रवहण जैवालि, अजातशत्र कोशेय और जनक विदेह की राज-परम्परा में विचारों के प्रवर्तक हुए। इन्होंने उपनिषदों के 'ब्रह्म' को छोड़ दिया, आत्मा को और वैचारिक विद्रोह को आगे बढ़ाया।
महावीर के विदेशी समसामयिकों में, स्वदेश के चिन्तकों में, बुद्ध थे, जिनके विचारों का देश-विदेश सर्वत्र विस्तृत प्रचार हुआ। इनके अतिरिक्त जिन पाँच अन्य दार्शनिकों के नाम तत्कालीन साहित्य ने बचा रखे हैं; वे थे, पुराणकश्यप, अजित केशकम्बलिन्, पकुध कच्चायन, संजय बेलठ्ठिपुत्त और मक्खलि गोसाल। पुराणकश्यप
श्रीमद राजेन्द्रसूरीश्वर-विशेषांक/१५९
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