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________________ ने आध्यात्मिक साधना को अत्यन्त स्पष्ट कर दिया और लोगों को जीवन के कृत्रिम आचार से तुलना करने का अवकाश दिया । शरीर कष्ट नहीं, अन्तर्दृष्टि महत्त्वपूर्ण है, जिसके पास अन्तर्दृष्टि है, वह कमल की पांखुरी पर पड़ी ओस की बूंद की तरह संसार में निर्लिप्त रह सकता है। पार्श्वनाथ का आध्यात्मिक सन्देश स्त्री-पुरुष सबके लिए एक समान है । पार्श्वनाथ के इस जीवन-दर्शन को, जो जैनधर्म के मौलिक सिद्धान्तों का ही एक आकार है, उत्तम प्रतिपादन हम तब देखते हैं जब उनका कमठ से साक्षात्कार होता है । कमठ पंचाग्नि तप रहा है, हिंसा कर रहा है, अपने युग की जनता से झूठे आध्यात्मिक वायदे कर रहा है, किन्तु जीवन की निश्छलता और सरलता से वंचित है; पार्श्वनाथ कह रहे हैं; जिस काठ खण्ड को तू जला रहा है उसमें नाग-नागिन झुलस रहे हैं । तू इतने असंख्य प्राणियों का घात क्यों कर रहा है ? अपनी ओर देख, भीतर यात्रा कर, वहाँ सब कुछ है । बाह्य तपश्चर्या से कुछ नहीं होगा, आभ्यन्तर तप की आवश्यकता है।' इस तरह पार्श्वनाथ ने अपने युग-जीवन को एक नया मोड़ दिया । कृत्रिमताओं को जीवन से निष्कासित किया, और मैत्री से मानव जीवन को अलंकृत किया । 10 'हमें इन दो बातों का भी स्मरण रखना चाहिये कि जैनधर्म निश्चित रूप से महावीर से प्राचीन है । उनके प्रख्यात पूर्वगामी पार्श्व प्रायः निश्चित रूप से एक वास्तविक व्यक्ति के रूप में विद्यमान रह चुके हैं, परिणाम स्वरूप मूल सिद्धान्तों की मुख्य बातें महावीर से बहुत पहले सूत्र रूप धारण कर चुकी होंगी । - डा. चार्ल शार्पेण्टियर तीर्थंकर : जून १९७५/१५८ Jain Education International क्षमा - सं. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520602
Book TitleTirthankar 1975 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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