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पाप-पुण्य में भेद नहीं मानते थे, न उनकी सम्भावना ही स्वीकार करते थे। अजित जो केशों का कम्बल धारण करते थे; कर्मों के फल, आत्मा पुनर्जन्म आदि स्वीकार करते थे। पकुध, भौतिक जगत्, सुख-दुःख आदि का रचयिता किसी को नहीं मानते थे और न ही हत्या,परपीड़न आदि में कोई दोष मानते थे। संजय संदेहवादी दर्शन के प्रवक्ता थे और मक्खलि आजीवक सम्प्रदाय के प्रवर्तक थे, जो अन्त में महावीर के शिष्य हो गये थे। इनके अतिरिक्त दो और दार्शनिक उस काल में अपने संघ लिये लोगों को उपदेश दिया करते थे—आलार कालाम और उद्दक (रुद्रक) रामपुत्त, दोनों बुद्ध के गुरु रह चुके थे, जिनके आश्रमों में कुछ काल रहकर बुद्धत्व प्राप्त करने से पहले गौतम ने ज्ञानार्जन किया था। पर वहाँ अपने प्रश्नों के सही उत्तर न पा उनसे विरक्त होकर वे राजगिरि की ओर जा पहाड़ियाँ लाँधकर गया पहुँचे थे और वहाँ उन्होंने सम्यक सम्बोधि प्राप्त की थी।
___चीन में उसके इतिहास का क्लासिकल काल-चुन्-चिउ का सामन्ती युग प्रायः ७२२ ई. पू. ही जन्म ले चुका था और राजनीति अब संस्कृति की ओर नेतृत्व के लिए देख रही थी। नेतृत्व दर्शन और धर्म ने दिया भी उसे, महावीर के प्रायः जीवन-काल में ही, छठी सदी ई. पू. में, चीन के विशाल देश में तीन महा-पुरुष जन्मे–कन्फशस (ल. ५५१-४७९ ई. पू.), लाओ-त्जू (ल. ५९० ई. पू.) और मोत्जू (ल. ५००-४२० ई.पू.) । लाओ-त्जू तो सम्भवतः ऐतिहासिक व्यक्ति न था, पर उसका ऐश्वर्य पर्याप्त फला-फूला। शेष दोनों धार्मिक-दार्शनिक नेता अभिजात कूलों के थे, महावीर और बुद्ध की ही भाँति । कन्फूशस लू राज्य का रहने वाला था और शुंग राजकुल की एक शाखा में जन्मा था । उसके पूर्वज वस्तुतः शांग सम्राटों के वंशज थे, जो कालान्तर में लू राज्य में जा बसे थे। कन्फूशस का दर्शन तत्त्वतः राजनीतिक था। उसका चिन्तन यद्यपि प्रतिक्रियावादी था; क्योंकि वह अपने समाज को "डिकेडेन्ट'-निम्नगामी-मानता था
और अतीत के स्वर्णयुग की ओर लौट जाना चाहता था और उसी दिशा में उसने प्रयत्न भी किये । पर प्रतिक्रियावादी होते हुए भी उसका वैचारिक आन्दोलन चल निकला
और उसने जनता पर अपने सम्मोहन का जादू डाला, ठीक उसी तरह जिस तरह प्रतिक्रियावादी होता हुआ भी अवनींद्रनाथ टैगोर का अजन्तावादी आन्दोलन भारत में चल गया था और उसका जादू बंगाल पर दीर्घकाल तक छाया रहा था । कन्फूशस ने प्राचीन ग्रन्थों को अपने चिन्तन-दर्शन के अनुरूप ढालकर उनकी व्याख्या की और आदिम अकृत्रिम जीवन की ओर उसने अपने अनुयायियों को लौट चलने को कहा। आचार उसका परम आराध्य बना। भारत के दार्शनिक महावीर के साथ साथ सभी भारतीय चिन्तक, रूढ़िविरोधी थे, अपनी तर्कसत्ता की लीक पर चलते थे। अनुकरण मौलिक चिन्तन का शत्रु है, यह वे जानते थे और अपनी ही खोजी राह उन्होंने अपनायी । . मो-त्जू कन्फूशस का एकान्त प्रतिगामी था, रूढ़ियों का अप्रतिम शत्रु । वह संग
तीर्थंकर : जून १९७५/१६०
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