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१. केवल संकेत मात्र से अर्थ का ज्ञान नहीं होगा क्योंकि शब्दों में अर्थोत्पादक शक्ति विद्यमान रहती है। स्वाभाविक शक्ति तथा संकेत से अर्थ के ज्ञात करने को शब्द कहते हैं । वाच्य (अर्थ) की भाँति वाचक (शब्द) को भी समझना चाहिये। दोनों सर्वथा निरपेक्ष नहीं हैं । ये एक होकर भी अनेक हैं । वाचक वाच्य से भिन्न भी है और अभिन्न भी है । 'क्षुर' (छुरा), 'अग्नि' और 'मोदक' शब्दों का उच्चारण करते समय बोलने वालों के मुख और सुनने वालों के कान 'छुरा ' शब्द से नहीं छिदते, 'अग्नि' शब्द से नहीं जलते, और 'मोदक' शब्द से मधुरता से नहीं भर जाते; इसलिए वाचक और वाच्य अभिन्न हैं । जिस समय जिस शब्द का उच्चारण होता है, उस समय उस शब्द से उसी वस्तु का बोध होता है । इस कथन से यह स्पष्ट है कि विकल्प से शब्द उत्पन्न होते हैं, क्योंकि 'गाय, कहने से 'गौ' के भाव के कारण 'गाय' अर्थ का ही बोध होता है । इसी प्रकार से शब्द से विकल्प उत्पन्न होते हैं, शब्द सुन कर ही भाव उत्पन्न होता है । अतएव शब्द और विकल्प दोनों में कार्य-कारण सम्बन्ध है । अर्थ, अभिधान तथा प्रत्यय ये पर्यायवाची शब्द हैं । शब्द और अर्थ में कथंचित् तादात्म्य सम्बन्ध माना गया है । अतएव शब्द विकल्प से प्रस्तुत होते हैं। कहा भी है-
शब्दयोनयः । स्पृशन्त्यपि ॥
२. पदार्थों को जानने में ज्ञान कारण है, इसलिए स्व-पर का निश्चय कराने वाला ज्ञान प्रमाण है; जैसे पत्थर के दो टुकड़ों को जोड़ने वाले लाख आदि पदार्थों का हमें प्रत्यक्ष ज्ञान होता है, वैसे पवन, मन आदि का नहीं होता । किन्तु हम अनुमान प्रमाण से मूर्त, अमूर्त वस्तु की क्रियाओं से उसका ज्ञान करते हैं। यह मनुष्य मेरे वचनों को सुनना चाहता है क्योंकि इसकी अमुक भाव-भंगिमा तथा चेष्टा है, यह ज्ञान बिना अनुमान के नहीं होता । इसी प्रकार यह युवक जिन बोलों को बोल कर गया है, उनका यही भाव है-- यह अनुमान प्रमाण का विषय नहीं है, क्योंकि शब्द में अर्थ है और भाव को प्रकट करने के लिए शब्द का प्रयोग है एवं आप्तों के द्वारा कहे गये वचन प्रमाण हैं, इस से शब्द स्वयं स्वतन्त्र प्रमाण माना गया है । आगम या शास्त्र इसीलिए प्रमाण है कि प्रामाणिक महापुरुषों की वाणी उसमें है ।
विकल्पयोनयः शब्दा विकल्पाः कार्यकारणता तेषां नार्थं शब्दाः
३. शब्द आकाश का गुण नहीं है; क्योंकि वह रूप, रस, गन्ध, स्पर्श की भाँति इन्द्रिय- प्रत्यक्ष है । संजातीय वस्तुओं के समुदाय को वर्गणा कहते हैं । जिन पुद्गल वर्गणाओं से शब्द बनते हैं, उनको भाषा वर्गणा कहते हैं । शब्द भाषावर्गणा है; आकाश का गुण नहीं है । स्पर्श गुण से युक्त होने के कारण जैसे गन्ध के आश्रित परमाणु वायु के अनुकूल होने पर दूर स्थित मनुष्य के निकट पहुँच जाते हैं, वैसे ही शब्द के परमाणु भी वायु के अनुकूल होने पर सुदूर प्रान्त स्थित श्रोता के पास जा पहुँचते हैं; जैसे गन्ध इन्द्रिय का विषय होने से पौद्गलिक है, वैसे
श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वर - विशेषांक / १४१
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