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________________ जैन दर्शन में शब्द-मीमांसा - डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री आधुनिक भाषा-वैज्ञानिकों ने केवल भाषा के भाषिक पक्ष का ही नहीं, दार्शनिक पक्ष का भी विश्लेषण किया है। भाषा उच्चारणात्मक है, इससे ध्वनिरूप में निःसृत भाषिक संकेतों में संस्कृति की यथार्थता का बोध होता है; इसलिए भाषा एक सहज वस्तु है। भाषा की स्वाभाविकता शब्दों में निहित रहती है। जैसे दर्शन आत्मसाक्षात्कार की स्थिति है, वैसे ही शब्द भाषा की स्थिति द्योतित करते हैं। शब्दों के बिना भाषा की कोई स्थिति नहीं है। भाषा का प्रत्यय शब्दों के द्वारा संकेतित होता है। दर्शन की भाषा चेतना के एक स्तर से दूसरे स्तर तक संक्रान्त होती है। दर्शन की अपनी पारिभाषिक शब्दावली, ज्ञान-मीमांसा तथा भावबोध है। यथार्थ में मौलिक रूप से विश्व के प्रत्येक पदार्थ तथा उसके विषय का वर्णन दार्शनिक दृष्टि से किया गया है। प्राचीनों ने क्या भाषा, क्या साहित्य, क्या व्याकरण सभी विषयों का दर्शन का आश्रय लेकर विश्लेषण एवं विवेचन किया है। उस दार्शनिक परम्परा की उद्धरणी अभिनव रूप में आज हमें लक्षित होती है। ___ प्रत्येक भारतीय दर्शन में द्वैत या अद्वैत की भूमिका पर चिन्तन हुआ है। पद-पदार्थ, शब्द, भाषा, जगत् और जीव आदि का विचार दार्शनिक चिन्तन से ओत-प्रोत है। जैनदर्शन में भी शब्द-मीमांसा निम्नलिखित बिन्दुओं पर की गयी है: १. आगमप्रमाण-मीमांसा, २. शब्दार्थ-प्रतिपत्ति, ३. शब्द की अर्थवाचकता, ४. सामान्यविशेषात्मक अर्थ वाच्य है, ५. असाधु शब्दों में भी अर्थवाचकता है। सामान्यतः जैनदर्शन यह मान कर चलता है कि पदपदार्थ, शब्द, भाषा, जगत, जीव आदि द्वैतमूलक हैं, क्योंकि संसार सांयोगिक है। संयोग का अर्थ है दो मिले हुए। जो हमें एक दिखलायी पड़ता है, वस्तुतः वह एक न होकर दो है। शब्द भी भाव से नितान्त पथक नहीं है, क्योंकि वह अभावात्मक नहीं है। शब्द और अर्थ में स्वाभाविक शक्ति मानी गयी है जो अभिव्यंजनात्मक है। इसलिए शब्द द्वैत है; किन्तु शब्द में अर्थबोधकता रहती है। शब्द से भिन्न अन्य किसी पदार्थ से भाषा-रूप में अर्थबोध अभिव्यक्त नहीं होता है, इसलिए शब्द को मूल श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वर-विशेषांक/१३९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520602
Book TitleTirthankar 1975 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1975
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size4 MB
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